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Search Result : "हिंदी फिल्म उद्योग"

बालश्रम पर कसेगा शिकंजा

बालश्रम पर कसेगा शिकंजा

भारत में बाल मजदूरी कोई नई बात नहीं है। प्रति वर्ष मजदूरी के नाम पर लाखों बच्चे गायब कर दिए जाते हैं। बच्चों की खरीद-फरोख्त करने वाले माफिया की जड़ें कमजोर करने के लिेए मौजूदा सरकार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम कराने पर रोक के लिए विधेयक ला रही है।
कड़ी सुरक्षा के बीच एमएसजी रिलीज

कड़ी सुरक्षा के बीच एमएसजी रिलीज

लाख विव‌ादों के बाद आखिरकार डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम की फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड (एमएसजी) रिलीज हो गई है। कई सिख संगठन इसका विरोध कर रहे हैं।
मराठी फिल्म में बोल्डनेस

मराठी फिल्म में बोल्डनेस

मराठी फिल्मों में भी अब बोल्डनेस आ रही है। आने वाली फिल्म ‘चित्रफित 3.0 मेगापिक्सल में इस बात को देखा जा सकता है।
अब रनबीर करेंगे 'तमाशा'

अब रनबीर करेंगे 'तमाशा'

हर किसी की तरक्की में किसी न किसी शख्स का योगदान रहता है। बॉलीवुड के ‘रॉकस्टार’ रनबीर कपूर की तरक्की में निर्देशक इम्तियाज अली और गीतकार इरशाद कामिल का योगदान है।
निर्माता बन गई अनुष्का शर्मा

निर्माता बन गई अनुष्का शर्मा

बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा अब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में हाथ आजमाते हुए चर्चा में आई हैं। उन्होंने फिल्म ‘एनएच10’ में पहली बार सह-निर्माता का दायित्व संभाला है।
अमिताभ की षमिताभ

अमिताभ की षमिताभ

निर्देशक आर. बाल्की ‘पा’ और ‘चीनी कम’ के बाद अमिताभ बच्चन के साथ तीसरी फिल्म षमिताभ लेकर आए हैं। उनकी यह फिल्म पिछली दोनों फिल्मों से बिल्कुल अलग है।
बदनाम हुए तो क्या, दाम मिलेगा

बदनाम हुए तो क्या, दाम मिलेगा

पीके फिल्म के नाम पर जितनी चिल्ला चोट हो सकती है हो रही है। बैनर-पोस्टर आग के हवाले किए जा रहे हैं। टेलीविजन चैनल पर बहस का बाजार गरम है। यह फिल्म के विषय पर बहस न होकर केसरिया-हरे की बहस हो कर रह गई है।
बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

राष्‍ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्‍ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।
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