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संबंधों में सुधार के लिए पाकिस्तान पहुंचा अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल

संबंधों में सुधार के लिए पाकिस्तान पहुंचा अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल

हाल ही में बलूचिस्तान में हुए एक अमेरिकी ड्रोन हमले में अफगान तालिबान प्रमुख मुल्ला मंसूर के मारे जाने से द्विपक्षीय संबंधों में आए तनाव तथा बढ़ते भारत-अमेरिका रणनीतिक सहयोग को लेकर कड़ी चिंता जताए जाने के बीच एक उच्च स्तरीय अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल आज पाकिस्तान पहुंचा।
मंसूर की मौत से सकते में आए अफगान तालिबान ने चुना नया नेता

मंसूर की मौत से सकते में आए अफगान तालिबान ने चुना नया नेता

अफगान तालिबान ने अपने पूर्व नेता मुल्ला अख्तर मंसूर की अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने की पुष्टि करते हुए बुधवार को समूह के नए नेता के नाम की घोषणा कर दी। आतंकवादी समूह ने हैबतुल्ला अखुंदजादा को अपना नया नेता नियुक्त किया है।
अमेरिका में भारतीयों ने पोटोमैक नदी में मनाया छठ पर्व

अमेरिका में भारतीयों ने पोटोमैक नदी में मनाया छठ पर्व

भारतीय अमेरिकी समुदाय के लोगों ने यहां ऐतिहासिक पोटोमैक नदी के तटों पर छठ का पर्व मनाया जहां पारंपरिक परिधान में सजी महिलाओं ने उगते सूर्य की पूजा की। वर्जीनिया में छठ पर्व तीन दिन तक मनाया गया जिसमें करीब 250 भारतीय अमेरिकी लोगों ने भाग लिया।
पापा को मिस करती हैं प्रियंका

पापा को मिस करती हैं प्रियंका

प्रियंका चोपड़ा के पहले अमेरिकी टीवी धारावाहिक क्वांटिको को बढ़िया प्रतिक्रिया मिल रही है। उनके काम को मिल रही सराहना को देखते हुए उन्हें खुशी भी है और वह अपने पिता को मिस भी कर रही है।
वीरेन डंगवाल और साथ चलता कंधे का अदृश्य झोला

वीरेन डंगवाल और साथ चलता कंधे का अदृश्य झोला

हिंदी के मशहूर यारबाश कवि वीरेन डंगवाल हमारे बीच नहीं रहे। आउटलुक ने अगस्त, 2013 में दिल्ली में उनसे लंबी बातचीत का समां बांधा था। इसमें पुरानी मिठास की चाशनी के साथ सिरों को जोड़ने का जिम्मा उठाया था उनके पुराने दिनों के साथी, वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने। आज हम सब जब वीरेन डंगवाल के जाने से बेहद दुखी है, उन्हें शिद्दत से याद करने का सिलसिला जारी है। हम उनसे हुई इस महत्वपूर्ण बातचीत फिर से साझा कर रहे हैं। कैंसर से जूझ रहे इस जिंदादिल कवि ने कितने गहरे सरोकारों की पोटली, जीवन दर्शन, 70 के दशक की बेचैनी, युवा पीढ़ी की सृजनशीलता...और भी बहुत कुछ जो जरूरी और बिसरा हुआ है, सबको पूरे अपनी संवेदना के साथ रखा था। इस संवाद से फिर-फिर गुजरकर, हाथ कुछ मोती ही लगेंगे---भाषा
उजले दिनों के कासिद वीरेन डंगवाल नहीं रहे

उजले दिनों के कासिद वीरेन डंगवाल नहीं रहे

अपनी कर्मभूमि बरेली में आज सुबह अंतिम सांसे ली, हिंदी के हस्ताक्षर कवि वीरेन डंगवाल ने। पिछले कुछ सालों से वह मुंह के कैंसर से बहादुराना लड़ाई लड़ रहे थे।