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असम: मुख्यमंत्री ने चाय जनजाति और आदिवासी समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों में 3% आरक्षण की घोषणा की

असम: मुख्यमंत्री ने चाय जनजाति और आदिवासी समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों में 3% आरक्षण की घोषणा की

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने रविवार को सरकारी नौकरियों में चाय और आदिवासी समुदायों के लिए तीन...
मणिपुर सीएम का बड़ा बयान; कहा- 'चिन कुकी' को एसटी में कैसे शामिल किया गया, इसकी जांच होगी

मणिपुर सीएम का बड़ा बयान; कहा- 'चिन कुकी' को एसटी में कैसे शामिल किया गया, इसकी जांच होगी

बीता साल मणिपुर के लिए दर्द भरा साल रहा। कई महीनों तक राज्य आपसी लड़ाई के बीच जलता रहा। नए साल में अब...
एससी/एसटी के खिलाफ ऑनलाइन अपमानजनक टिप्पणी करने पर भी संबंधित कानून लागू होगा: हाईकोर्ट

एससी/एसटी के खिलाफ ऑनलाइन अपमानजनक टिप्पणी करने पर भी संबंधित कानून लागू होगा: हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के किसी व्यक्ति के...
मात्रागत त्रुटि की वजह से आरक्षण से वंचित है यह जनजाति

मात्रागत त्रुटि की वजह से आरक्षण से वंचित है यह जनजाति

छत्तीसगढ़ के संवरा जनजाति के कुछ लोग पिछले कुछ दिनों से दिल्ली आकर विभिन्न सांसदों के चक्कर काट रहे हैं, पूछने पर बताते हैं कि हम लोग दशकों से इस तरह भटक रहे हैं, लेकिन हमें अभी तक कोई पायदा नहीं हुआ। दरअसल इनका कहना है कि सौंरा, संवरा, सवरा, सौरा छत्तीसगढ़ की जनजाति है जिन्हें पिछले 2002 से लिपिकीय त्रुटि की वजह से आदिवासी नहीं माना जा रहा है। लिहाजा जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण सहित अन्य लाभ से यह समुदाय पूरी तरह वंचित है।
कांग्रेस की सामाजिक समरसता, यूपी के दलित-सवर्ण अब साथ चखेंगे भीम भोज

कांग्रेस की सामाजिक समरसता, यूपी के दलित-सवर्ण अब साथ चखेंगे भीम भोज

उत्‍तर प्रदेश में अपनी खोई पैैठ बढ़ाने के लिए कांग्रेस हर संभव प्रयास कर रही है। अंबेडकर की विचारधारा को ध्‍यान में रखते हुए दलित समाज को अपने से जोड़ने के लिए पार्टी ने भीम ज्‍योति यात्रा का पिछले साल सफल आयोजन किया। अब वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर 20 अगस्‍त को भीम भोज का आयोजन करेगी।
कुपोषण से लुप्त हो रहे कमार आदिवासी

कुपोषण से लुप्त हो रहे कमार आदिवासी

‘ एक आदमी के लिए सात किलो चावल और दो किलो चना, क्या इससे गरीबी दूर होती है?’ कोंडागांव के नगरी संभाग के गांव उमर का सुखदेव यह सवाल करते हुए रुआंसा हो जाता है। उसकी पत्नी और तीन बच्चे खेत में मजदूरी करने गए हैं। सौ रुपये दिहाड़ी मिलती है और जंगल से मिलने वाली साग-भाजी तो अब पहले जैसी नहीं रही। सुखदेव का कहना है कि वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है। लेकिन सरकार ने सिर्फ साइकिल देकर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर दी। उसकी छोटी बेटी नौवीं कक्षा में दो बार फेल हो गई थी तो स्कूल वालों ने तीसरी बार एडमिशन देने से इनकार कर दिया।