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										    हर व्यक्ति का अपना एक अतीत होता है। बल्कि कहना गलत न होगा कि हमारा वर्तमान हमारे अतीत की नींव पर टिका होता है। ऐसे में अगर हमारे भीतर से अतीत विस्मृत हो जाए तो हमारा पूरा वजूद डावांडोल होने लगता है। हम अपनी पहचान के संकट से आक्रांत हो उठते हैं। ऐसे में किसी संवेदनशील व्यक्ति का अपने अतीत की तहों में उतरकर स्मृतियों के रेशे तलाशना स्वाभाविक है। 										
                                                                                
                                     
                                                 
  
  
  
  
  
  
  
  
			 
                     
                    