यूजीसी ने 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को भेजे नोटिस में साफ लिखा है कि ओबीसी आरक्षण अस्सिटेंट प्रोफेसर के अलावा एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पदों में नहीं दिया जाएगा
यूजीसी पर कब्जा आंदोलन देश भर में फैल रहा है। छात्रों के बीच आक्रोश उफान पर है। सरकार की छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन एक तरह से बड़े राजनीतिक सवालों को भी उठा रहा है।
देश की उच्च शिक्षा नियामक संस्था केंद्रीय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दस ऐसे प्रमुख संस्थानों को आदेश जारी किया है कि वे अपने कैंपस से अन्यत्र केंद्रों को तत्काल बंद कर दें। इन प्रमुख संस्थानों में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च एवं होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट, नरसी मुंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज यूनिवर्सिटी, बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स पिलानी) तथा बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा शामिल हैं।
उच्च शिक्षा या शिक्षा मात्र विचारहीनता के संकट से गुजर रही है। अभी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सारे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को फरमान जारी किया है कि वे चयन आधारित क्रेडिट व्यवस्था वाले पाठ्यक्रम 2015-16 से लागू करें। यह एक असाधारण आदेश है। विश्वविद्यालयों में क्या पढ़ाया जाएगा, क्या नहीं, यह तय करना आयोग के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है। फिर भी, न सिर्फ उसने यह हुक्म जारी किया है, बल्कि अपने वेबसाईट पर उसने अनेक विषयों के पाठ्यक्रम बनाकर लगा भी दिए हैं। विश्वविद्यालयों को कहा गया है कि वे इन्हें तुरंत लागू करें। इनमें बीस प्रतिशत की हेर-फेर करने की छूट उन्हें है। यह अभूतपूर्व है और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता में सीधा हस्तक्षेप है। मज़ा यह है कि आयोग यह नहीं बता रहा कि आखिर ये पाठ्यक्रम तैयार किन्होंने किए हैं! स्वाभाविक है कि उसके इस कदम का शिक्षकों की ओर से कड़ा विरोध हो रहा है।
लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद जब स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास जैसा भारी भरकम मंत्रालय दिया गया तो कई लोगों की भवें टेढ़ी हुईं। आखिर इस मंत्रालय के राजीव गांधी के जमाने में नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में मुरली मनोहर जोशी और संप्रग एक के दौर में अर्जुन सिंह जैसे नेता संभाल चुके थे जो खुद कभी प्रधानमंत्री पद की रेस में रहे थे।