प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग ने मंगलवार को पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम के चेन्नई स्थित ठिकानों और कंपनियों पर छापे मारे।
बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सलाह दी कि वह कांग्रेस नेता पी चिदंबरम से सीखें और इस बात को कबूल करें कि उनके द्वारा लिखे गए टेलीविजन धारावाहिक के प्रसारण पर रोक लगाना गलत था। मुस्लिम कट्टरपंथियों की आपत्ति के बाद इस टेलीविजन धारावाहिक के प्रसारण पर रोक लगा दी गई थी।
देश में बढ़ती असहिष्णुता पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने वाली कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि सलमान रूश्दी की किताब 'द सेटेनिक वर्सेस' पर राजीव गांधी सरकार की तरफ से प्रतिबंध लगाया जाना एक गलती थी।
देश में बढ़ती असहिष्णुता पर चल रही बहस को आगे बढ़ाते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि विचारों के लिए माहौल बेहतर बनाने के वास्ते सहिष्णुता तथा परस्पर सम्मान जरूरी है और किसी समूह विशेष को शारीरिक क्षति पहुंचाने या अपमानजनक शब्द कहने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
भाजपा के शीर्ष नेताओं वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज से जुड़ा ललितगेट विवाद गहराता जा रहा है। ताजा घटनाक्रम में पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम भी कूद गए हैं। चिदंबरम ने ललित मोदी मामले में संप्रग सरकार के दौरान ब्रिटेन के अधिकारियों को लिखे गए सभी पत्रों को सार्वजनिक करने की मांग की जिसमें बारे में उनका कहना है कि इससे कांग्रेस और उनके खिलाफ सभी आरोपों का जवाब मिल जाएगा।
संप्रग सरकार के दौरान सोनिया गांधी के संविधानेतर शक्ति होने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आरोपों को खारिज करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने भाजपा और उसके नेतृत्व वाली सरकार का संचालन आरएसएस और उनके घातक छिपे एजेंडे के अनुरूप होने का आरोप लगाया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और तमिलनाडु कांग्रेस अध्यक्ष ई वी के एस इलनगोवन के बीच कई हफ्तों से जारी मतभेदों के बीच चिदंबरम ने अपने छह समर्थकों के निष्कासन को लेकर एआईसीसी से हस्तक्षेप करने की मांग कर शनिवार को प्रदेश प्रमुख को सीधी चुनौती दी है।
वित्त मंत्री के रूप में पी. चिदंबरम की नीतियों से निजी कंपनी वेदांता को हुआ सीधा लाभ, हर्षद मेहता घोटाले के बाद से ही एक-दूसरे के साथ हैं चिदंबरम और वेदांता के मालिकान
राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।