फिल्म 'आजाद हिन्द फौज' के तीन जांबाज अफसरों के खिलाफ अंग्रेजों द्वारा लगाए देशद्रोह के मुकदमे के आसपास घूमती हुई देशद्रोह और देशभक्ति को बहुत सरल शब्दों में परिभाषित करती है।
निर्देशक तिग्मांशु धुलिया देशभक्ति में रंगी हुई राग देश लेकर हाजिर हुए हैं। विषय तो देशभक्ति है लेकिन उस दौर की जब उस पर राजनीति नहीं होती थी। फिल्म की कहानी 1945 की है।
तीन सैनिक। एक हिंदू, एक मुसलमान और एक सिख। तीनों ब्रिटिश इंडियन आर्मी के अफसर दूसरे विश्व युद्ध में सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी जॉइन कर लेते हैं। तीनों आजाद हिंद के लिए जापानियों के साथ मिलकर इम्फाल और बर्मा में जंग लड़ते हैं। जंग के बाद तीनों पर ब्रिटिश सरकार राजद्रोह और हत्या का मुकदमा चलाती है।
फिल्म निर्माता तिग्मांशु धूलिया क्रिकेट के बाहर अनजान और साहसी संघर्ष के लिए पहचाने गए एक दलित गेंदबाज बालू पालवणकर के जीवन पर फिल्म बनाने वाले हैं। यह फिल्म बाएं हाथ के स्पिनर बालू पालवणकर की कहानी बयां करेगी, जिन्होंने वर्ष 1900 की शुरुआत में हिंदू जिमखाना क्लब के लिए खेला था। बालू दलित समुदाय के पहले सदस्य थे जिन्होंने इस खेल पर अपनी महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। अपने समय के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर होने के बाद भी बालू को दलित होने के कारण कभी टीम का कप्तान नहीं बनाया गया।
फिल्मों में जमने के लिए क्या फार्मूला है। सही मायनों में कोई तयशुदा फार्मूला नहीं होता हां एक बात है जो आपके पक्ष में होनी चाहिए और वह है किसी बेहतरीन निर्देशक से अच्छी ट्यूनिंग। यह ट्यूनिंग न इतनी आसान होती है न आसानी से बनती है। लेकिन अमित साध इसमें सफल रहे हैं।