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आकांक्षा पारे काशि‍व

संदेश के साथ आई दुल्हनिया

संदेश के साथ आई दुल्हनिया

सीधा-सादा बद्रीनाथ (वरुण धवन) और तेज तर्रार वैदेही (आलिया भट्ट) की शादी दहेज, लड़की शादी के बाद नौकरी नहीं करेगी टाइप के कई ट्विस्ट उनकी शादी को रोक देते हैं। वैदही भाग जाती है और उसके पीछे-पीछे भागता है बद्रीनाथ। कुछ गाना बजाना, कुछ डायलॉग और वैदेही को भी हो गया प्यार।
रंगून यानी गुनाह बेलज्जत

रंगून यानी गुनाह बेलज्जत

विशाल भारद्वाज बड़े कैनवास पर फिल्म रंगून ले कर आए हैं। ओमकारा, मकबूल, हैदर बनाने वाले निर्देशक इतनी बड़ी चूक कर सकते हैं यकीन करना थोड़ा मुश्किल है। दुखांत अंत उनकी फिल्मों का स्थाई भाव रहता है जो यहां भी है। लेकिन ओमकारा या मकबूल में यह दर्शकों को सिहरा देता था और यहां दर्शक राहत की सांस लेते हैं कि चलो फिल्म अब खत्म होगी।
वाकई ‘काबिल’ है ‘रईस’

वाकई ‘काबिल’ है ‘रईस’

दो फिल्मों के टकराने में इस बार शाहरूख खान और ऋतिक रोशन भिड़ गए हैं। दोनों ही अलग-अलग जॉनर की फिल्में हैं और दोनों की कलाकारों की अपनी फैन फॉलोइंग है। यह अलग बात है कि शाहरूख उसमें रितिक से बीस ही बैठेंगे।
छोरे से कम नहीं ये ‘दंगल’ करने वाली छोरियां

छोरे से कम नहीं ये ‘दंगल’ करने वाली छोरियां

किसी फिल्म को देखने के लिए सबसे पहले सवाल आता है कि इस फिल्म को क्यों देखना चाहिए। अगर दंगल के बारे में भी यही प्रश्न मन में है तो इसे इसलिए देखना चाहिए कि यह एक विश्वसनीय फिल्म है, किरदारों से लेकर लोकेशन तक, अभिनय से लेकर भावनाओं तक। यह कहानी गीता-बबीता से ज्यादा महावीर सिंह फोगाट की कहानी है।
दिल्ली में गुजरात भवन कैंटीन नहीं है कैशलेस

दिल्ली में गुजरात भवन कैंटीन नहीं है कैशलेस

दीया तले अंधेरे की कहावत दिल्ली के गुजरात भवन में साकार हो रही है। देश भर को कैशलेस बनाने की मुहिम में जुटे नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि नकद की जगह कार्ड का इस्तेमाल हो, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित गुजरात भवन के कैंटीन में अभी तक यह व्यवस्था नहीं हो पाई है।
‘शिवाय’ की मुश्किल ‘...मुश्किल’ में शिव-शिव

‘शिवाय’ की मुश्किल ‘...मुश्किल’ में शिव-शिव

इस बार दर्शकों के सामने दो फिल्में बॉक्स ऑफिस पर आई हैं। दोनों चर्चित और बड़ी फिल्में हैं। लेकिन यदि दर्शकों जो भी फिल्म देख लें या तो वे कुएं में गिरेंगे या खाई में। अजय देवगन और करण जौहर दोनों ही ने अपनी कमजोर निर्देशकीय पारी खेली है।
दीनदयाल दर्शन की एक चाभी संघ, एक भाजपा के पास

दीनदयाल दर्शन की एक चाभी संघ, एक भाजपा के पास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने आज दिल्ली के विज्ञान भवन में दीनदयाल उपाध्याय वाड्मय (15 खंड) का विमोचन किया। आम विमोचन से अलग इस समरोह में पुस्तकें सुनहरे वर्क में लिपटी हुई अतिथियों के हाथों में नहीं थीं। समारोह में दीनदयाल उपाध्याया वाड्मय के 15खंड एक बक्से में रख थे जिसके दो कपाटों पर ताला लगा था। एक कपाट पर लगा ताला मोदी ने खोला जबकि दूसरी ओर का भय्याजी जोशी ने। आज के कार्यक्रम का यही सबसे बड़ा संदेश था, जिसके निहितार्थ बहुत कुछ समझे जा सकते हैं।
पार्टी जो बोलेगी वह करूंगी – स्वाति सिंह

पार्टी जो बोलेगी वह करूंगी – स्वाति सिंह

स्वाति सिंह उत्तर प्रदेश महिला मोर्चे की अध्यक्ष बन गई हैं। या यूं कहें बना दी गई हैं। पिछले दिनों उन्होंने जिस तरह से स्त्री अस्मिता की बात कह कर बसपा सुप्रीमो मायावती को बैक फुट ले आईं वह काबिले तारीफ था। नई अध्यक्ष ने आउटलुक हिंदी से बात की और साझा की उनकी योजनाएं।
सलीब पर चढ़ी अकीरा

सलीब पर चढ़ी अकीरा

ए आर मुरुगादॉस की नई फिल्म अकीरा में सोनाक्षी सिन्हा को अक्षय कुमार स्टाइल की ढिशुम-ढिशुम करते देख कर अच्छा तो लगता है पर यदि कहानी में कुछ पेंच न होते तो बात ही क्या थी।
हैप्पी तो हैप्पी है

हैप्पी तो हैप्पी है

हैप्पी भागती है लेकिन अपने दर्शकों को हंसा-हंसा कर भागती है। यह मिलावट के साथ असली फिल्लम है। सच्ची। हैप्पी (डायना पेंटी) के किरदार में खिलंदड़पन है पर वह जब वी मेट की गीत नहीं है। बग्गा प्रेम का दुखयिरा है पर यह तनु वेड्स मनु का राजा अवस्थी भी नहीं है। फिर भी यह मजेदार है और दिमाग पर बोझ नहीं डालती।
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