जब बॉक्स ऑफिस पर दो फिल्में टकराती हैं तो सबसे बड़ा सवाल होता है, कमाई कौन करेगा। कमाई का तो पता नहीं पर दर्शक डैडी के बजाय पोस्टर बॉएज देखना ज्यादा पसंद करेंगे यह कहा जा सकता है।
आनंद एल राय निर्माता के रूप में शायद ‘तनु वेड्स मनु’ से आगे कुछ चाह रहे थे। इस बार उन्होंने निर्देशन की बागडोर आर एस प्रसन्ना के हाथों में दे दी। फिल्म के कई संवादों पर खूब तालियां बजीं, ठहाके भी लगे। बालकनी में बैठने वाले शायद सीटी न बजा पाएं पर जो लोग ड्रेस सर्किल में बैठते हैं उनके लिए उसकी पूरी छूट है। इसका सिर्फ इतना सा कारण है कि फिल्म पहली बार सेक्स करने में अक्षम पुरुष पर खुल कर बात करती है।
बाबूमोशाय बंदूकबाज फिल्म के शीर्षक से यह तो पता चल रहा है कि यह बंदूक की कहानी है। बंदूक होगी तो गोलियां भी होंगी, गोलियां होंगी तो गालियां खुद ब खुद चली आएंगी और खून...वह तो फैलेगा ही।
हंसाना दुनिया का सबसे कठिन काम है। लव स्टोरी में तो सच में बहुत कठिन। लेकिन तिवारी दंपती ने मिल कर बहुत सारे चेहरों पर मुस्कान ला दी है। मीठी-मीठी बर्फी सही जम गई है, भाईसाब!
भारत की आजादी का विभाजन त्रासदी का महाकाव्य है। इस पर अनगिनत फिल्में बनाई जा सकती हैं। इस फिल्म के इतने आयाम हैं कि विश्व का हर फिल्मकार भी उस त्रासदी पर फिल्म बनाए तो भी कहानी पूरी न हो।
जब हैरी मेट सेजल यानी कि हिंदी में बोले तो जब हैरी सेजल से मिला। तो हैरी जब सेजल से मिला तो स्यापा पै गया। ऑरिजनल स्यापा। जो सेजल की अंगूठी में लगा ता ओरिजनल डायमंड उतना ही ओरिजनल। हैरी को तो फिल्मी पौने तीन घंटे में सेजल, यू नो सेजल मिली, पर भैया इम्तियाज से कोई तो जाके पूछो मल्टीप्लेक्स जाने वाली जनता को क्या मिला?
अनीस बज्मी को कनफ्यूजन से बड़ा प्यार है। उनकी नई फिल्म मुबारकां का आधार भी यही है। फिल्म के पात्र शुरुआत में कुछ नहीं बोलते लेकिन आखरी के दस मिनट में सभी को कॉन्फिडेंस आ जाता है और सब कुछ ठीक हो जाता है।
एक लंबे चौड़े डिस्क्लेमर के बाद बस पांच मिनट में ही दर्शकों को पता चल जाता है कि दरअसल असली "इंदू सरकार" कौन है। लचर नरैशन, उससे भी ढीली पटकथा और अपने पात्र को स्थापित करने के लिए ही मधुर भंडारकर आधा घंटा लेते हैं। मधुर ने फिल्म ऐसे बनाई है जैसे आपातकाल आज लगा हो और उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है। वरना सावधानी हटी और दुर्घटना घटी जैसा कुछ होगा और वह सीधे तिहाड़ दर्शन कर लेंगे।