एक के बाद एक आप नेता विवादों में फंसते जा रहे हैं। जितेंद्र सिंह तोमर की डिग्री पर बवाल के बाद अब कुमार विश्वास को दिल्ली महिला आयोग ने समन भेजा है। पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता ने आरोप लगाया है कि उनके और कुमार विश्वास के संबंधों को लेकर सोशल मीडिया में अफवाहें फैलाई जा रही है, जिससे उनकी बदनामी हो रही है। और उसका परिवार टूटने के कगार पर है। इस मामले की शिकायत महिला अरविंद केजरीवाल और दिल्ली पुलिस आयुक्त से भी कर चुकी है।
उत्तराखंड के रामनगर में दो पत्रकारों पर जानलेवा हमला किया गया है। हमले में स्वतंत्र पत्रकार और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महासचिव प्रभात ध्यानी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। प्रभात को हद्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
अवैध शराब पर रोक लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने एक मोबाइल एप्लीकेशन विकसित किया है। इस एप्लीकेशन के जरिये अब ग्राहक अपनी पसंदीदा ब्रांड की शराब की वैधता परख सकेंगे।
धीरे-धीरे दिल्ली फिल्म बनने के नए केंद्र के रूप में स्थापित हो रही है। यहां न सिर्फ फिल्मों की शूटिंंग होने लगी है बल्कि मुंबई पर अब निर्भरता कम हो रही है।
देश में स्वाइन फ्लू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। करीब 10 राज्यों में अबतक 650 के आस-पास लोग इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं और बीमारी से प्रभावितों की संख्या 10 हजार से ऊपर जाने की आशंका है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक निलंबित नहीं रखा जा सकता क्योंकि ऐसे व्यक्ति को समाज के आक्षेपों और विभाग के उपहास का सामना करना पडता है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अवाम नाम के एक संगठन ने आम आदमी पार्टी पर फर्जी कंपनियों से चंदा लेने का आरोप लगाया है। इस मामले में बीजेपी ने आप को घेरने की कोशिश की है। आप ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्पेशल टास्ट फोर्स बना कर बीजेपी, कांग्रेस और आप के चंदे की जांच कराए।
चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?