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Search Result : "आत्महत्या मुक्त"

आप रैली में किसान आत्महत्या

आप रैली में किसान आत्महत्या

आज जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की रैली में आत्महत्या करने वाला व्यक्ति राजस्थान के दौसा जिले का रहने वाला किसान गजेंद्र सिंह था। मौजूद लोगों के अनुसार उसकी उम्र लगभग 50 वर्ष थी।
वसुंधरा के खिलाफ नारेबाजी कर रहा था मृतक किसान

वसुंधरा के खिलाफ नारेबाजी कर रहा था मृतक किसान

जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की रैली में आत्महत्या करने वाला किसान गजेंद्र सिंह राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ नारेबाजी कर रहा था। गोंडा से आए किसान दिग्गज सिंह और उनके साथियों के अनुसार वह बोल रहा था ‘ वसुंधरा राजे मुर्दाबाद’ ।
पिपली लाइवः दिल्ली में किसान की जान के मायने

पिपली लाइवः दिल्ली में किसान की जान के मायने

शर्म इनको नहीं आती। एक किसान ने अपनी जान दी। उसने किस गहरे नैराश्य में डूबकर अपनी जिंदगी को फांसी लगाई, इस पर चर्चा करने के बजाय बाकी सारे पहलुओं पर बात पूरी बेहयायी के साथ बैटिंग चल रही है। किसान अपनी जेब में अपनी व्यथा की जो छोटी सी पुर्जी लेकर चल रहा था, वैसी ही पुर्जी लाखों किसानों ने आत्महत्या करने से पहले अपने दिलों में लिखी होगी।
कांग्रेस मुक्त भारत भाजपा का राजनीतिक एजेंडा

कांग्रेस मुक्त भारत भाजपा का राजनीतिक एजेंडा

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का एजेंडा कांग्रेस मुक्त भारत है। पार्टी ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में इस बात को जोर-शोर से रखा है कि कांग्रेसमुक्त भारत ही भाजपा का एजेंडा है।
प बंगाल में बढ़ी किसानों की आत्महत्या

प बंगाल में बढ़ी किसानों की आत्महत्या

खेती के लिए लिये गये ऋण चुकाने में असफल रहने से व्यथित एक किसान ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली है। यह घटना पश्चिम बंगाल के मालदा जिले की है। इसके साथ ही राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़ कर नौ हो गयी है।
दिल्ली को कांग्रेस मुक्त करने के लिए ‘आप’ का शुक्रिया: साक्षी महाराज

दिल्ली को कांग्रेस मुक्त करने के लिए ‘आप’ का शुक्रिया: साक्षी महाराज

भारतीय जनता पार्टी के विवादास्पद सांसद साक्षी महाराज ने अपनी पार्टी के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। एक बयान में उन्होंने दिल्ली को कांग्रेस मुक्त करने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) का शुक्रिया अदा किया है।
हरितक्रान्ति की विधवाएं

हरितक्रान्ति की विधवाएं

हरितक्रान्ति के गवाह पंजाब में बैसाखी के बाद किसान ढोल-नगाड़े तो अब वैसे भी नहीं बजाते। लेकिन कृषि प्रधान देश के लिए यह बात शर्म की है कि इस मौके पर आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाएं अपने हक के लिए चौखट से बाहर निकल सडक़ों पर आ गई हों। खेतों से मंडियों में पहुंचे गेंहू के सुनहरे दाने और इन दिनों रोपे जा रही धान की पौध इन्हें खुश नहीं कर रहीं। इनके हमनिवाज कर्ज के चलते आत्महत्या कर चुका है, जमीन इनके पास है नहीं, कर्जा जस के तस है, बैंक और आढ़ती इन्हें जलील करने से बाज नहीं आ रहे, जमींदारों के घरों का गोबर उठाकर बच्चे पाल रही हैं या लोगों के फटे लीड़े सिलती हैं ये।
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