प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल की एक चुनावी सभा में कहा है कि पिछले साठ सालों के दौरान यहां जिन्होंने राज किया है, उन्होंने केरल को बरबाद करने के सिवाय कुछ नहीं किया।
स्वास्थ्य गड़बड़ होने पर मुंह का स्वाद बदल जाता है। इसी तरह भारत में मौसम के साथ महंगाई बढ़ने पर आम आदमी के दांत खट्टे भले ही न हों, दाल खट्टी और चीनी कड़वी लगने लगती है। एक तरफ किसानों को अनाज, तिलहन और गन्ने का सही दाम नहीं मिलता और कर्ज से तंग आकर लोग आत्महत्या करते हैं, दूसरी तरफ कालाबाजारी और सूदखोर दलाल एवं व्यापारियों का एक वर्ग मनमाने ढंग से मूल्य वसूलते हैं।
योजना आयोग के स्थान पर बनी नई संस्था नीति आयोग दरअसल हिन्दी नहीं बल्कि इसके अंग्रेजी नाम नेशनल इंस्टीट्यूट फार ट्रांसफार्मिंग इंडिया का संक्षिप्त स्वरूप है। नीति अंग्रेजी वर्णों का प्रतिनिधित्व करता है।
उत्तराखंड में घरेलू और व्यवसायिक दोनों श्रेणियों में बिजली की दरों में करीब पांच फीसदी की वृद्धि होने से प्रदेश के उपभोक्ताओं को अब ज्यादा बिल चुकाना होगा।
देश की शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने निजी क्षेत्र के एचडीएफसी बैंक के बारे में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि उसके मन में भारत के प्रति कोई प्यार और सम्मान नहीं है। उपभोक्ता अदालत ने यह भी कहा कि बैंक ने विदेश में फंसे एक दंपति के डेबिट कार्ड को चालू नहीं कर देश की साख को खतरे में डाला।
मकान खरीदकर उसके कब्जे के लिए सालो साल इंतजार करने के दिन खत्म होने वाले हैं। आपसे पैसा लेकर बिल्डर अब दूसरी परियोजनाओं में उसे नहीं लगा सकते है। आपका कम से कम 70 फीसदी पैसा उसी परियोजना की भूमि और निर्माण में लगेगा जिसके लिए आपने पैसा दिया है।
थोक मूल्य मुद्रास्फीति में चार महीने से चल रहा तेजी का सिलसिला जनवरी में टूट गया और इस महीने यह घटकर शून्य से 0.9 प्रतिशत नीचे रही। खाद्य उत्पादों, मुख्य तौर पर सब्जियों और दलहन के सस्ते होने से जनवरी में थोक मुद्रास्फीति नरम पड़ी है।
सालाना दस लाख रुपये से अधिक आय वाले करदाताओं को अगले महीने से सब्सिडी वाला रसोई गैस सिलेंडर (एलपीजी) नहीं मिलेगा। सरकार ने सब्सिडी में कमी के लिए रियायती दरों पर सिलेंडरों की आपूर्ति सीमित करने का फैसला किया है।
बिहार चुनाव में क्यों इतनी क्रूरता से पलटा भाजपा का भाग्य। भाजपा के प्रवक्ता और समर्थक महागठबंधन के अंकगणित और विपक्षी एकता को ही बढ़-चढ़कर अपनी हार की मुख्य वजह बताने मे लगे हैं। इस बहस में यह तथ्य बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया गया कि हाल के चुनाव में भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के अच्छे खासे प्रतिशत ने पार्टी का साथ छोड़ दिया।