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उत्तर प्रदेश के मदरसों में होगी NCERT के पाठ्यक्रम से पढ़ाई, अब उर्दू के अलावा हिंदी-अंग्रेजी की भी तालीम

उत्तर प्रदेश के मदरसों में होगी NCERT के पाठ्यक्रम से पढ़ाई, अब उर्दू के अलावा हिंदी-अंग्रेजी की भी तालीम

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार मदरसों को मुख्य धारा से जोडऩे के लिए लगातार अभियान चला रही है। इस कड़ी में...
सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अगले साल से उर्दू में भी होगी नीट परीक्षा

सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अगले साल से उर्दू में भी होगी नीट परीक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को 2018-19 सत्र में नीट परीक्षा में उर्दू को भी एक भाषा के रूप में शामिल कि जाने को लेकर केंद्र को निर्देश जारी किया है। छात्रों ने नीट 2017-18 सत्र के लिए सुप्रीम कोर्ट में उर्दू को एक भाषा के रूप में लेने के लिए अर्जी दी थी, लेकिन 2017-18 सत्र में इसे शामिल नहीं किया जा सका।
अगले शैक्षणिक वर्ष से उर्दू में भी नीट संभव

अगले शैक्षणिक वर्ष से उर्दू में भी नीट संभव

केंद्र ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों की एकल प्रवेश परीक्षा नीट अगले शैक्षणिक वर्ष से उर्दू माध्यम में भी कराने के सुझाव पर विचार के लिए तैयार है।
उर्दू सभी भारतीयों की सांस्कृतिक विरासत है: वेंकैया नायडू

उर्दू सभी भारतीयों की सांस्कृतिक विरासत है: वेंकैया नायडू

केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि जो छात्र भविष्य में पत्रकार बनने की महत्वकांक्षा रखते हैं उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खबरों और विचारों का मिश्रण ना हो। उर्दू पत्रकारिता में नए पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करने पर आईआईएमसी की सराहना करते हुए नायडू ने कहा कि उर्दू पत्रकारिता मीडिया और हमारे देश के संचार व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पीजे शायरी के ‘दंगल’ में आमिर

पीजे शायरी के ‘दंगल’ में आमिर

आमिर खान हमेशा ही कुछ नया करने में विश्वास करते हैं। बॉलीवुड उनकी इसी आदत के चलते मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहता है। इसी महीने के आखरी में 30 तारीख को उनकी फिल्म रीलिज होने वाली है और वह अनोखे ढंग से इसके प्रचार में उतर गए हैं।
‘भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि मजहब को भाषा की जरूरत होती है’

‘भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि मजहब को भाषा की जरूरत होती है’

उर्दू जबान की तरक्की के लिए फिक्रमंद साहित्यकारों और शिक्षाविदों का मानना है कि इस भाषा को सिर्फ मुसलमानों की जबान के तौर पर पेश कर एक दायरे में सीमित करने की कोशिशें की जा रही हैं जबकि असलियत यह है कि यह पूरे देश में और विभिन्न समुदायों में बोली जाती है और इसके विकास में सभी का अहम योगदान है। इसके अलावा उर्दू और हिंदी छोटी और बड़ी बहने हैं और इनमें आपस में कोई टकराव नहीं है।