हंदवाड़ा में जिस लड़की के साथ कथित छेड़छाड़ के बाद शुरू हुए झड़प में 6 लोगों की जान चली गई, उसका शनिवार की शाम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराया गया।
एनआईटी कश्मीर में पड़ने वाले दूसरे राज्यों के छात्रों की ज्यादातर मांगें संस्थान प्रशासन के मान लिए जाने के बाद 10 दिन से ज्यादा से अशांत चल रहे संस्थान परिसर में शांति बहाल हो गई है। इस बीच एनआईटी परिसर का दौरा करने पहुंचे फिल्म अभिनेता अनुपम खेर को प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी और हवाई अड्डे पर ही रोक दिया।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने एनआईटी श्रीनगर के बाहर के छात्रों की संस्थान को कश्मीर से बाहर स्थानांतरित करने की मांग खारिज कर दी है लेकिन उन्हें उनके वास्तविक मुद्दों पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
कश्मीर घाटी में पृथकतावादी संगठनों द्वारा बुलाई गई हड़ताल की वजह से सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफजल गुरू प्रकरण के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस ए आर गिलानी और जेएनयू छात्रों को देशद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ इस हड़ताल का आह्वान किया गया है।
गुलमर्ग और पहलगाम के पर्यटक रिसॉर्ट सहित कश्मीर के ऊंचाई वाले कई इलाकों में ताजा बर्फबारी हुई जबकि घाटी के मैदानी इलाकों में बारिश हुई है। मौसम विभाग ने यहां पर अगले दो दिनों तक मौसम गीला रहने का अनुमान व्यक्त किया है।
दिल्ली पुलिस ने कश्मीरी गेट आईएसबीटी इलाके से आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट यानी आईएसआईएस से संपर्क रखने के संदेह में 28 वर्षीय युवक को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी पिछले माह एक आतंकवादी माड्यूल का पता लगाए जाने के सिलसिले में पांचवीं गिरफ्तारी है।
दिल को छू लेने वाली कश्मीरियत की मिसाल कायम करते हुए दक्षिण कश्मीर में कुलगाम जिले के एक गांव के मुसलमानों ने एक कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया। यह कश्मीरी पंडित आतंकवादियों के खतरे के कारण घाटी छोड़ने की बजाए अपनी जड़ों से चिपका रहा। उसने घाटी छोड़ कहीं और बसने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था जबकि उसके सभी परिजन घाटी से पलायन कर गए।
पूर्वोत्तर के बारे में मैं कहना चाहूंगा कि असम एक ऐसा राज्य है, जहां अस्थिरता रही है। 70 के दशक में वहां भारी हंगामा रहा और 80 का दशक आते-आते हंगामा बढ़ता रहा। उसके समाधान के लिए, वहां लोकतंत्र लाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जो कदम उठाए वह आज तक किसी ने नहीं उठाए। सन 1985 में वहां हंगामा करने वालों की जीत हुई थी, उन्होंने सरकार चलाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने असम को बरबाद करके छोड़ दिया। उनमें हुकूमत बनाए रखने की क्षमता नहीं थी। लेकिन यह लोकतंत्र है, यहां जो जनता चाहेगी उसी की सरकार बनेगी। बेहतर प्रदर्शन के आधार पर वोट मिलेंगे। आखिरकार जनता ने सही सरकार चुनी।
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने 26 वर्ष पहले घर छोड़ने के लिए मजबूर कश्मीरी पंडितों के अपने घरों को वापस नहीं लौटने का दोष आज कश्मीरी पंडितों के सिर पर ही मढ़ दिया।