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सांप्रदायिकता की काट के लिए गैर मुस्लिम भी रखें एक दिन रोजा: जस्टिस काटजू

सांप्रदायिकता की काट के लिए गैर मुस्लिम भी रखें एक दिन रोजा: जस्टिस काटजू

भारतीय प्रेस काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने मंगलवार से शुरू हो रहे रमजान के महिने में सभी गैर मुस्लिमों से एक दिन रोजा रखने की अपील की है। काटजू ने ऐसा मुस्लिमों के साथ एकजुटता दिखाने और सांप्रदायिकता के जहर को खत्म करने के मकसद से कहा है।
सीआईए के स्टेशन चीफ को जहर देने वाला था आईएसआई

सीआईए के स्टेशन चीफ को जहर देने वाला था आईएसआई

लादेन की हत्या का बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने सीआईए के बड़े अफसरों को जहर देकर मार डालने की साजिश रची थी। इसकी भनक मिलते ही पाकिस्तान में पदस्थ अमेरिकी राजनयिकों और सीआईए के अधिकारियों ने रातों-रात पाकिस्तान छोड़कर भारत पहुंचने की योजना बनाई थी। अमेरिका के अखबार वाशिंग्टन पोस्ट ने यह सनसनीखेज खुलासा किया है।
बाबा साहब ने जहर खुद पिया, हमारे लिए अमृत छोड़ गए: पीएम मोदी

बाबा साहब ने जहर खुद पिया, हमारे लिए अमृत छोड़ गए: पीएम मोदी

लोकसभा में संविधान पर हो रही चर्चा में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। संंविधान निर्माण में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के योगदान को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बाबासाहेब का योगदान न होता तो संविधान शायद सामाजिक दस्‍तावेज न बनता। यह एक कानूनी दस्तावेज ही रह जाता।
एफबीआई लैब: जहर से नहीं हुई थी सुनंदा की मौत

एफबीआई लैब: जहर से नहीं हुई थी सुनंदा की मौत

कांग्रेस सांसद शशि थरुर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में एफबीआई जांच रिपोर्ट में आज एक नया खुलासा सामने आया है। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई की फोरेंसिक जांच रिपोर्ट से पता चला है कि सुनंदा की मौत किसी प्रकार के जहर से नहीं हुई थी।
जहर से हुई शैलेष की मौत

जहर से हुई शैलेष की मौत

मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले के आरोपी और राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेष यादव की मौत का राज गहराता जा रहा है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक शैलेष की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में नहीं बल्कि जहर से हुई है।
हरितक्रान्ति की विधवाएं

हरितक्रान्ति की विधवाएं

हरितक्रान्ति के गवाह पंजाब में बैसाखी के बाद किसान ढोल-नगाड़े तो अब वैसे भी नहीं बजाते। लेकिन कृषि प्रधान देश के लिए यह बात शर्म की है कि इस मौके पर आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाएं अपने हक के लिए चौखट से बाहर निकल सडक़ों पर आ गई हों। खेतों से मंडियों में पहुंचे गेंहू के सुनहरे दाने और इन दिनों रोपे जा रही धान की पौध इन्हें खुश नहीं कर रहीं। इनके हमनिवाज कर्ज के चलते आत्महत्या कर चुका है, जमीन इनके पास है नहीं, कर्जा जस के तस है, बैंक और आढ़ती इन्हें जलील करने से बाज नहीं आ रहे, जमींदारों के घरों का गोबर उठाकर बच्चे पाल रही हैं या लोगों के फटे लीड़े सिलती हैं ये।
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