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Search Result : "खालीस्तानी आंदोलन"

जन्तर-मन्तर पर फिर अन्ना आंदोलन

जन्तर-मन्तर पर फिर अन्ना आंदोलन

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ अन्ना हजारे का आंदोलन जारी है। देश भर से किसान संगठनों का आना जारी है। आज शाम चार बजे तक जंतर-मंतर पर अन्ना को सुनने वालों की तादाद करीब पांच हजार थी। इससे पहले लोकपाल बिल के लिए जब अन्ना हजारे ने आंदोलन शुरू किया था तो उस आंदोलन ने देश की में राजनीति भूचाल ला दिया था। उस समय न केवल आंदोलन की गूंज दूर तक गई थी बल्कि अन्ना टीम के कई सदस्यों को राजनीति में पैर रखने के लिए नया फलक भी मिला। आज वे सदस्य राजनीति ने नए हीरो हैं। शायद इस दफा आंदोलन का कोई राजनीतिक फायदा न उठा सके इसके लिए अन्ना ने किसी को भी मंच सांझा नहीं करने दिया। मंच सिर्फ अन्ना और उनका निजी कामकाज देख रहे दत्ता अवारी ही थे।
केजरी, किरण को अण्णा का न्योता नहीं

केजरी, किरण को अण्णा का न्योता नहीं

अण्णा हजारे का 23-24 फरवरी को दिल्ली के तर-मंतर पर होने वाला आंदोलन सांकेतिक आंदोलन होगा। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ, किसानों के हक को लेकर इस धरने में देशभर से लोग जुटेंगे। सरकार ने अगर तीन महीने तक आंदोलकारियों की प्रस्तावित मांगों पर गौर नहीं किया तो रामलीला मैदान में अनिश्चिकालीन धरना दिया जाएगा।
राजस्व गांव की मांग को लेकर प्रदर्शन

राजस्व गांव की मांग को लेकर प्रदर्शन

उत्तराखंड में बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की मांग को लेकर अखिल भारतीय किसान महासभा ने बड़ा प्रदर्शन किया। बिंदुखत्ता नैनीताल जिले का एक गांव है। इसकी आबादी पच्चीस हजार से ज्यादा है।
अन्ना फिर करेंगे आंदोलन

अन्ना फिर करेंगे आंदोलन

अन्ना का कहना है कि काले धन के मुद्दे पर कहा कि जनता के साथ जो ''धोखाधड़ी की गई है इसलिए अब जनता सरकार को सबक सिखाएगी।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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