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परमाणु हथियारों का जखीरा खत्म हो: ईरान

परमाणु हथियारों का जखीरा खत्म हो: ईरान

ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने मंगलवार को यहां एनपीटी समीक्षा सम्मेलन में कहा, परमाणु हथियार संपन्न देशों ने अपने परमाणु हथियारों को समाप्त करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं की है।
समीक्षा- मि. एक्स

समीक्षा- मि. एक्स

किसी साधारण बात को खास बनाने की जो भी संभव कोशिश हो सकती है, विक्रम भट्ट ने की है। थ्रीडी चश्मा, गायब होने वाला नायक, अंग्रेजी फिल्मों की तरह मारधाड़, विज्ञान के (कृपया बेतुका पढ़ें) चमत्कार आदि-आदि। फिर भी बेचारे दर्शक को समझ नहीं आता कि छोटे और ग्लैमरस कपड़ों में सिया वर्मा (अमायरा दस्तूर) दरअसल कैसी वाली पुलिस बनी हैं। रघु राठौर (इमरान हाशमी) पता नहीं कैसे सुपरकॉप बनें हैं जो न पहले अपने पुलिसिए बॉस का खुरपेंची दिमाग समझ पाए न बाद में अपनी पुलिसिया गर्लफ्रैंड का। मतलब दो-दो बार धोखा।
समीक्षा- धरम संकट में

समीक्षा- धरम संकट में

भगवान या उनके नुमाइंदों को कटघरे में खड़ा करने वाली यह हाल ही की तीसरी फिल्म है। ओह माय गॉड, पीके के बाद धरम संकट में फिल्म भी श्रद्धा-विश्वास के बीच की रेखा को समझने की कोशिश करती है। वैसे यकीन मानिए यह किसी साधू-संत से ज्यादा परेश रावल की फिल्म है।
फिल्म समीक्षाः डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्‍शी

फिल्म समीक्षाः डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्‍शी

दो साल के अंतराल के बाद दिबाकर बनर्जी अपनी नई फिल्म डिटे‌क्टिव ब्योमकेश बक्‍शी के साथ लोगों के सामने हैं। बनर्जी ने प्रसिद्ध बांग्ला लेखक शार्देंदू बंद्योपाध्याय रचित प्रसिद्ध चरित्र ब्योमकेश बक्‍शी को केंद्र में रखकर दूसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में उस दौर के कोलकाता और युद्ध के दौरान जापानी सेना के भारत में लगातार बढ़ते अभियान के साथ-साथ चीनी और जापानी ड्रग माफिया की कहानी को एक सस्पेंस थ्रिलर के रूप में पेश किया है।
सारदा घोटाला : सुदीप्तो सेन 14 दिन की न्यायिक हिरासत में

सारदा घोटाला : सुदीप्तो सेन 14 दिन की न्यायिक हिरासत में

करोड़ों रूपये के चिटफंड घोटाला मामले में मुख्य आरोपी सारदा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन को यहां की एक अदालत ने एक सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी द्वारा दायर एक मामले के संबंध में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
न्यायिक देर से भी अंधेर हो सकता है

न्यायिक देर से भी अंधेर हो सकता है

भारतीय संविधान के तहत उपलब्ध न्यायिक सुनवाई के अधिकार और संस्थाबद्ध प्रणालियों में त्वरित न्याययिक सुनवाई के अधिकार की ज्यादा गुंजाइश नहीं बनाई गई है, यह हाल में 40 साल बाद ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में आए फैसले से साबित है।
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