भारत में आजादी के आंदोलन में छात्रों और नौजवानों की अहम भूमिका रही थी। शहीद भगत सिंह, जयप्रकाश नारायण (जेपी) और लोहिया तक उस युवा शक्ति के क्रांतिकारी पक्ष के प्रतीक हैं।
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव पर नजर रखते हुए दलितों को लुभाने की कवायद में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज आरोप लगाया कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने किसी अन्य दलित नेता को आगे नहीं बढने दिया जबकि कांग्रेस हर प्रदेश में युवा दलित नेतृत्व खड़ा करना चाहती है।
जमीयत उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना सैयद महमूद मदनी ने कहा है कि मुसलमान बाइचांस इंडियन नहीं बल्कि बाइच्वाइस इंडियन हैं और वतन से प्यार था इसलिए वे भारत में रुके। मदनी ने यह बातें मेरठ में आयोजित हुसूले इंसाफ सम्मेलन में बोलीं।
भारत की सीमा से सटे नेपाल के शहर मोरंग में आंदोलनकारी मधेसियों और सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल की युवा शाखा के कार्यकर्ताओं के बीच गुरूवार को जमकर झड़प हुई। नेपाल में हुई इस ताजा हिंसा की घटना में तीन लोगों की जान चली गई। लोगों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस की ओर से की गई गोलीबारी में एक महिला समेत तीन व्यक्तियों की मौत हुई है।
स्त्री अस्मिता को लेकर भारत में शुरू हुए स्त्रीवादी आंदोलनों और महिला अधिकारों की बहसों की शुरुआत के बाद से स्त्रीवादी कविता में उसके सरोकारों की भी बात होने लगी। हालांकि, उसके पहले भी स्त्रीवादी कविताएं लिखी जाती थीं, लेकिन तब उसमें स्त्री अधिकारों और सरोकारों की बातें कम होती थीं, स्त्री सौंदर्य और स्त्री प्रेम की बातें ज्यादा होती थीं।
साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी द्वारा 23 भारतीय भाषाओं के युवा रचनाकारों को साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार-2015 प्रदान किए गए। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा, कोई भी पुरस्कार या राशि तो वापस की जा सकती है किंतु प्राप्त सम्मान कभी वापस नहीं किया जा सकता। यह स्वयं द्वारा अर्जित होता है और समाज यानी ‘लोक’ की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
देश में लेखकों पर बढ़ते हमले और असहमति की आवाजों को दबाने के विरोध में हिंदी के वरिष्ठ कवि-चिंतक मनमोहन ने हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से मिला सम्मान लौटा दिया है। उन्होंने सम्मान के साथ मिली 1 लाख रुपये की राशि भी अकादमी को वापसभेज दी है।
अनिल कार्की विकल, विकट और अंतहीन छटपटाहटों का कवि है। ये मनुष्यि से आगे एक विचारवान मनुष्या होने की छटपटाहटें हैं, जो उसे समय में आगे-पीछे ले जाती रहती हैं। अनिल के पास विचार है और उसे वह दिमाग के किसी कोने में पस्त नहीं पड़े रहने देता।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी साम्राज्यवाद और राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी-मार्का हिंदुत्ववादी फासीवाद के मौजूदा वर्चस्व के दौर में वीरेन डंगवाल (1948-2015) की कविता किसी आत्मीय, जीवंत, वामपंथी प्रतिज्ञा की तरह सामने आती है।