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Search Result : "ये तेरा घर ये मेरा घर"

मेरा स्टाइल बोरिंग है

मेरा स्टाइल बोरिंग है

बाजीराव मस्तानी फिल्म का इंतजार इतनी बेसब्री से है कि इस फिल्म के बारे में कोई भी खबर आए लोग उत्सुकता से पढ़ते हैं। अब दीपिका पादुकोण ने अपने किरदार के कपड़े पहने तो यह भी खबर बन गई।
मेरी आजादी मेरा गौरव है

मेरी आजादी मेरा गौरव है

मेरी स्वतंत्रता मेरा गौरव है और इसी के लिए मैं भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्‍थान (एफटीआईआई) में संघर्ष कर रही हूं।
‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त यातायात मुक्तेश चंद्र का नाम सुनते ही एक दबंग अंदाज, कड़क मिजाज और अनुशासन प्रिय अधिकारी की छवि उभरकर सामने आती है। लेकिन इस छवि के अलावा मुक्तेश चंद्र की पहचान एक बांसुरी वादक के रुप में भी है। 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी मुक्तेश चंद्र से बांसुरी के प्रति उनके लगाव और निष्ठा को लेकर बातचीत की गई। पेश है प्रमुख अंश-
मेरा कोई धर्म नहीं-सईद मिर्जा

मेरा कोई धर्म नहीं-सईद मिर्जा

सईद मिर्जा का सिनेमा सामाजिक सरोकारों वाले सिनेमा के लिए जाना जाता है। भारतीय समानांतर सिनेमा के इस निर्देशक ने सलीम लंगड़े पे मत रो और अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है जैसी कई महत्वपूर्ण फिल्में बनाई हैं।
वीआईपी संस्कृति में मेरा विश्वास नहीं: फडणवीस

वीआईपी संस्कृति में मेरा विश्वास नहीं: फडणवीस

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को उनके काफिले का रास्ता बनाने के लिए पुलिसकर्मियों द्वारा वाहनों को रोके जाने के कारण लोगों को हुई परेशानी पर दुख जाहिर किया है और कहा है कि वह वीआईपी संस्कृति से बचते हैं।
मांझी मेरे कारण गए मेरा सौभाग्यः चौधरी

मांझी मेरे कारण गए मेरा सौभाग्यः चौधरी

बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने जीनत राम मांझी के विश्वासमत के दौरान लिए गए अपने फैसलों को सही, संवैधानिक तथा नियमानुकूल ठहराते हुए आज कहा कि यदि मांझी ने उनकी वजह से इस्तीफा दिया है तो वे स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं।
वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वन भूमि पर सामुदायिक अधिकारों के दावा फॉर्म अधिकतर जगहों पर न तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं न उनकी जानकारी दी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार पूरे राजस्थान में अब तक केवल 150 सामुदायिक दावे ही पेश हो पाए हैं। अधिकतर वन अधिकार समितियां निष्क्रिय होने के कारण भौतिक सत्यापन नहीं हो पा रहा है। जहां वे सक्रिय हैं वहां वन विभाग और पटवारी सहयोग नहीं कर रहे हैं। समितियों, यहां तक कि ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित दावों को भी नौकरशाही नहीं सत्यापित कर रही है। कुछ जगहों पर अनपढ़ लोगों को धोखे से कब्जा छोडऩे के दावे पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। कहीं-कहीं दावेदारों के मौके पर काबिज होने के बावजूद काबिज नहीं होना दिखाया जा रहा है। साक्ष्यों की सूची में दावेदारों को नियमत: तीन में दो साक्ष्य मांगे जा रहे हैं। इस मामले में वन विभाग ग्राम सभाओं को भी गुमराह कर रहा है। नियमत: हर स्तर पर सत्यापन तक लोगों को बेदखल नहीं किया जा सकता लेकिन कई जगह लोगों को बीच में ही लोगों को बेदखल किया जा रहा है। गैर आदिवासी जंगलवासियों के दावे सीधे नामंजूर किए जा रहे हैं जो नियम विरुद्ध है। अभी तक 1980 के पहले के दावों का ही सत्यापन किया जा रहा है जबकि कानून 2005 तक के कब्जे मान्य होने चाहिए।
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