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Search Result : "लोकतंत्र पर बहस"

भू विधेयक पर अन्ना ने दी मोदी को बहस की चुनौती

भू विधेयक पर अन्ना ने दी मोदी को बहस की चुनौती

अन्ना हजारे ने कह है कि वह जमीन अधिग्रहण विधेयक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खुली बहस करना चाहते है। फिलहाल राजग सरकार के संशोधित जमीन अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ अभियान चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने गुरूवार को इस प्रस्तावित कानून के विवादास्पद प्रावधानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खुली बहस करने को कहा है।
धर्मांतरण पर बहस चाहते हैं गृहमंत्री

धर्मांतरण पर बहस चाहते हैं गृहमंत्री

देश में भगवा खेमे की ओर से चलाए जा रहे घर वापसी कार्यक्रम और अल्पसंख्यकों के प्रार्थना गृहों पर लगातार हो रहे हमलों के बीच सोमवार को देश के के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने धर्मांतरण पर सवाल उठा दिया और धर्मांतरण रोकने के लिए कानून की वकालत की।
फेसबुक पर लिखने से रोकना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है?

फेसबुक पर लिखने से रोकना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है?

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान के बारे में फेसबुक पर कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान पोस्ट करने के कारण उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए के तहत एक लड़के को गिरफ्तार करने का मामला चर्चा में है।
आप का एजेंडा क्या है

आप का एजेंडा क्या है

क्या आम आदमी पार्टी (आप) सचमुच लोकतांत्रिक मूल्यों या सामाजिक सरोकारों के लिए लड़ना चाहती है या जैसे-तैसे चुनाव जीतना ही इसका पहला मक़सद है? पार्टी के भीतर चल रही उथल-पुथल से यह अहम सवाल पैदा होता है।
भूषण ने फिर उठाया 'आप' में लोकतंत्र का मामला

भूषण ने फिर उठाया 'आप' में लोकतंत्र का मामला

आम आदमी पार्टी के असंतुष्ट नेता प्रशांत भूषण ने पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को नया पत्र लिखकर उन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है जिन्हें वह उठाने की कोशिश करते रहे हैं। भूषण ने इन खबरों को भी खारिज कर दिया कि अगर केजरीवाल उनकी मांगों को मान लेते हैं तो वह राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटने को तैयार हैं।
‘आप’ का स्वराज कहां है भई?

‘आप’ का स्वराज कहां है भई?

भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति, प्रत्यक्ष लोकतंत्र (डायरेक्ट डेमोक्रेसी), स्वराज जैसे जुमलों को हवा में उछाल कर जिस तरह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ दिल्ली की सत्ता में आई। उसे जनता के एक बड़े हिस्से ने भारतीय राजनीति में बदलाव की ताकत के तौर पर देखा। लेकिन पार्टी के मुख्य हीरो जिस तरह लगातार इन शब्दों का मजाक उड़ाते रहे उससे नाराज लोग अब सवाल उठाने लगे हैं कि यह आप का स्वराज है कहां? आप की भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति की पोल अब पूरी तरह खुल चुकी है। यह भी साबित हो चुका है कि पार्टी का केजरीवाल गुट किसी भी तरह से सत्ता में आना और बने रहना चाहता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आपराधिक, धनबली और बाहुबली प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया उस पर सवाल तो उठे थे लेकिन केजरीवाल गुट के मीडिया मैनेजरों ने कभी भी इन्हें मुख्य सवाल नहीं बनने दिया। क्या अपराधियों और बाहुबलियों को साथ लेकर कोई भ्रष्टाचार विरोधी लड़ी जा सकती है। यह सवाल उठाना अब पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को महंगा पड़ रहा है क्योंकि कल के उम्मीदवार आज चुनाव जीत चुके हैं और दोनों नेताओं को ठिकाने लगाने के लिए अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी कर रहे हैं।
हिंदी समाज को अच्छी तरह समझते थे विनोद मेहता

हिंदी समाज को अच्छी तरह समझते थे विनोद मेहता

विनोद मेहता की कई बातें जो उन्हें अन्य संपादकों से अलग करती थीं, उनमें सबसे बड़ी यह है कि वे लोकतंत्र में सिर्फ यकीन ही नहीं करते थे, उसे पत्रकारिता में भी पूरी तरह अपनाया हुआ था। संपादक के नाम पत्र कॉलम में अपने खिलाफ लिखी चिट्ठियों को भी वे जिस तरह तवज्जो देते थे, उसकी मिसाल शायद ही अन्यत्र मिले।
कहां है आप का आंतरिक लोकतंत्र?

कहां है आप का आंतरिक लोकतंत्र?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर नई तरह की जन आकांक्षाएं पैदा की थीं। लेकिन सरकार बनने के कुछ ही वक्त बाद पार्टी के भीतर का वैचारिक संघर्ष बाहर आ गया है। अरविंद केजरीवाल और समर्थकों के निशाने पर पार्टी नेता योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण हैं। इन दोनों नेताओं ने पार्टी के भीतर लोकतांत्रिकरण की बहस उठाई थी। साथ ही पार्टी में व्यक्ति के बजाय सामूहिक निर्णय पर जोर दिया था। अब पार्टी के भीतर नैतिक सवालों को भीड़ के तर्क के आधार पर हल करने की कोशिश की जा रही है।
कॉरपोरेट हवस से कैसे बचे लोकतंत्र?

कॉरपोरेट हवस से कैसे बचे लोकतंत्र?

कॉरपोरेट लॉबींग और सरकारी नीतियों को अपने पक्ष में मोड़ने का एक और बड़ा मामला सामने आया है। साल 2010 में कॉरपोरेट लॉबीस्ट नीरा राडिया के टेप के बाहर आने पर कॉरपोरेट, मीडिया, नौकरशाही और राजनीति के गठजोड़ से बड़े पैमाने पर पर पर्दा हटते दिखा था। उसी तरह पेट्रोलियम मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज़ों को हासिल करने में बड़े कॉरपोरेट समूहों ने किस तरह के हथकंडे अपनाये यह अब सामने आ चुका है।
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