Advertisement

Search Result : "वी किशोर चंद्र देव"

नेता-माफिया के गठजोड़ से मध्य प्रदेश सरकार कटघरे में

नेता-माफिया के गठजोड़ से मध्य प्रदेश सरकार कटघरे में

मध्य प्रदेश एक बार फिर माफिया की करतूतों से चर्चा में है। खनन, भूमि, स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में फैले माफियाओं ने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कल तक मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार का गुणगान करने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेता भी अब मानने लगे हैं कि राज्य में अव्यवस्था फैलती जा रही है।
नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी पर सरकार का पाखंड

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य के मसले पर कांग्रेस की सरकारों, खासकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ आग उगलने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली वाजपेयी सरकार और वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने भी इससे संबंधित विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों, खुफिया सूचनाओं और अन्य दस्तावेजों के खुलासे से इनकार किया।
‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त यातायात मुक्तेश चंद्र का नाम सुनते ही एक दबंग अंदाज, कड़क मिजाज और अनुशासन प्रिय अधिकारी की छवि उभरकर सामने आती है। लेकिन इस छवि के अलावा मुक्तेश चंद्र की पहचान एक बांसुरी वादक के रुप में भी है। 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी मुक्तेश चंद्र से बांसुरी के प्रति उनके लगाव और निष्ठा को लेकर बातचीत की गई। पेश है प्रमुख अंश-
सनी को ऐश्वर्या से तुलना पसंद नहीं

सनी को ऐश्वर्या से तुलना पसंद नहीं

सनी लियोन को एश्वर्या राय बच्चन से अपनी तुलना पसंद नहीं है। सनी कहती हैं कि ढोल बाजे बोल वाले गीत पर उन्होंने डांस किया है लेकिन वह जानती हैं कि यह गाना एश्वर्या के मूल सुपरहिट गाने का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।
काटजू को गुस्सा क्यों आता है?

काटजू को गुस्सा क्यों आता है?

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू फिर चर्चाओं में हैं। इस बार उन्होंने राष्ट्र पिता माने जाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस की आलोचना की है। उन्होंने गांधी को फर्जी और बोस को जापानी फासिस्टों का एजेंट कहा है। काटजू के बयान के लिए राज्यसभा में उनकी निंदा का प्रस्ताव पास किया जा चुका है।
एक धीमी सी याद

एक धीमी सी याद

उनकी मुंदी आंखों के नीचे अंधेरे की गाढ़ी परत बिछी हुई थी। सरकारी अस्पताल के उस आईसीयू में गुजरे जमाने के मशहूर गवैए उस्ताद इकराम मुहम्मद खान को उनकी जिंदगी आखरी सलामी देने की तैयारी कर रही थी।
Advertisement
Advertisement
Advertisement