चुनाव आयोग का बिगुल बजने से पहले और चुनाव अभियान चल निकलने के साथ ही आगामी विधानसभा चुनावों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने नतीजे दिखाने शुरू कर दिए। कुछ बानगी:
वैश्विक नरमी के बीच अर्थव्यवस्था कैसे प्रोत्साहित हो इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के जाने-माने उद्योगपतियों, बैकरों, अर्थशास्त्रियों और मंत्रियों के साथ बैठक की। बैठक का विषय था, हाल का वैश्विक घटनाक्रम-भारत के लिए अवसर। वैश्विक स्तर मंदी को लेकर चल रहे उठा-पटक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चितिंत कर दिया है। इसी चिंता का परिणाम है वह लगातार उद्योग संगठनों और उद्योगपतियों से मिल रहे हैं। इससे पहले 30 जून को भी प्रधानमंत्री ने उद्योगपतियों और उद्योग संगठनों से चर्चा की थी।
यह कोई लंबे चाकुओं वाली रात (नाईट ऑफ लॉन्ग नाईव्ज) नहीं थी। इस बार यह सबको पता था। यूनान के यूरोजोन से बाहर हो जाने को रोकने के लिए एक समाधान निकाल लिया जाएगा, यह और कुछ नहीं सिर्फ एक भोली भाली सोच थी। जैसे ही यूनान के अनियत मार्क्सवादी वित्त मंत्री यानिस वारूफकिस ने अपना पद छोड़ा तो स्टॉक बाजार और मुद्रा विनीमय केंद्र को समझ में ही नहीं आया कि कैसी प्रतिक्रिया दें, राहत मिलने की या घबराहट या गुस्से और खुशी वाली कि सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है।
वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी की सटीक भविष्यवाणी करने वाले अर्थशास्त्री और आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन ने चेतावनी दी है कि विश्व अर्थव्यवस्था के सामने 1930 जैसी महामंदी का खतरा पैदा हो सकता है।
अमेरिका के एक पूर्व शीर्ष राजनयिक ने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक जिम्मेदारियों को उठाने और भारत एवं अमेरिका के बीच संबंधों को मजबूती देने के लिए भारत के भीतर मोदी की प्रगति बेहद जरूरी है।
संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों के दौरान पिछले साल मारे गए सेना, पुलिस और असैन्य नागरिकों से जुड़े 126 लोगों को मरणोपरांत प्रतिष्ठित संयुक्त राष्ट्र मेडल से सम्मानित करेंगे।
विश्व की 2000 सबसे बड़ी और शक्तिशाली सूचीबद्ध कंपनियों में से 56 भारत में हैं। यह बात फोर्ब्स की सालाना सूची में कही गई जिसमें 579 कंपनियों के साथ अमेरिका शीर्ष पर है।
ऐसा लगता है कि मोदी सरकार का पहला साल कारोबारी जगत को रास नहीं आ रहा। तभी तो शेयर बाजार लगातार बेजार होता जा रहा है और सेंसेक्स पिछले चार महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है।