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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए भारत की वकालत

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए भारत की वकालत

भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षक मिशनों में सैनिक मुहैया कराने के लिहाज से सबसे बड़े देशों में से एक है तथा उसे सैनिकों की तैनाती और शांति मिशनों के गठन से संबंधित सुरक्षा परिषद के फैसलों में शामिल होने का अधिकार है। यह कहना है भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग का। जनरल सुहाग ने शुक्रवार को विश्व निकाय के पहले चीफ्स ऑफ डिफेंस सम्मेलन में यह टिप्पणी की।
भारत, चीन सीमा वार्ता शुरू

भारत, चीन सीमा वार्ता शुरू

भारत और चीन के बीच दिल्ली में 18वें दौर की सीमा वार्ता आज से शुरू हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले साल सत्ता संभालने के बाद यह दोनों देशों के बीच पहले चरण की सीमा वार्ता है।
तीन देशों की यात्रा संपन्न कर स्वदेश लौटे प्रधानमंत्री

तीन देशों की यात्रा संपन्न कर स्वदेश लौटे प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की अपनी पांच दिवसीय यात्राा समाप्त कर स्वदेश लौट आए। तीन देशों - सेशल्स, माॅरीशस और फिर श्रीलंका - की यात्रा के अंतिम दिन मोदी जाफना का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्राी बने।
मजबूत सेना चाहते है राष्ट्रपति

मजबूत सेना चाहते है राष्ट्रपति

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि भारत को सिर्फ शांति सुनिश्चित करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए भी मजबूत रक्षा बलों की जरूरत है।
दोस्ती की राह पर ईरान-अमेरिका?

दोस्ती की राह पर ईरान-अमेरिका?

जिनीवा में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी और उनके ईरानी समकक्ष ने तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर गहन वार्ता की, जिसका उद्देश्य महत्वपूर्ण समय सीमा से पहले करार की राह में आड़े आ रही बाधाओं को दूर करना है।
संयुक्त राष्ट्र पर भारत-अमेरिका की बातचीत

संयुक्त राष्ट्र पर भारत-अमेरिका की बातचीत

भारत और अमेरिका ने दोनों देशों के रिश्ते मजबूत और व्यापक करने संबंधी मित्रता के दिल्ली घोषणापत्र की भावना के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय मुद्दों पर पहली द्विपक्षीय वार्ता की है।
शांति के पासे फेंकने की जरूरत

शांति के पासे फेंकने की जरूरत

निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्‍वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।
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