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Search Result : "सुरेश भैयाजी जोशी"

पीपीपी की राह पर रेल बजट

पीपीपी की राह पर रेल बजट

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेल यात्रा किराये में कोई वृद्धि नहीं करने की घोषणा करते हुए आज अपने पहले रेल बजट में निवेश को बढाने, रेलवे में साफ सफाई और यात्री सुविधाओं के विस्तार, यात्रा एवं माल परिवहन क्षमता में विस्तार के साथ 11 क्षेत्रों में मिशन के रूप में काम करने पर जोर दिया।
आम नहीं खास के हितों की रेल

आम नहीं खास के हितों की रेल

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बहुत सधे अंदाज में रेलवे को नए तरह के निवेश, नए तरह के निजीकरण और नई तरह निजी-सरकारी साझेदारी के लिए खोला है।
रेल हादसे में 10 की मौत

रेल हादसे में 10 की मौत

बंगलूरू से एर्नाकुलम जा रही ट्रेन के पटरी से उतर जाने पर 10 लोगों की मौत हो गई है और क़रीब 100 लोग घायल हो गए हैं। यह हादसा होसूर के पास बेलागोंडापल्ली गांव के पास हुआ। हादसे के बाद एक फिर रेलवे मंत्रालय पर सवाल उठने लगे हैं।
बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

राष्‍ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्‍ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।
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