केंद्र सरकार ने अब तीन डॉक्युमेंट्री फिल्मों की स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी है। बताया जा रहा है कि रोहित वेमुला, जेएनयू और कश्मीर के मुद्दे पर बनी इन डॉक्युमेंट्री को सेंसर से राहत नहीं मिली है।
उत्तर प्रदेश में दादरी के बिसाहड़ा कांड ने पूरी दुनिया के सामने हिन्दू और मुस्लिमों के बीच रिश्तों की एक स्याह तस्वीर पेश की। लेकिन, यहां की हकीकत इससे बिल्कुल जुदा है। यह दावा किया गया है ग्रेटर नोएडा में हिन्दू-मुस्लिम एकता और स्थानीय संस्कृति को पेश करती डॉक्यूमेंट्री ‘द ब्रदरहुड’ में जो जल्द ही रिलीज होने वाली है।
धर्मशाला अंतरराष्टीय फिल्मोत्सव (डीआईएफएफ) ने कल स्थानीय जिला कारागार में एक फिल्म की विशेष स्क्रीनिंग की। जेल के कैदियों और कर्मचारियों के लिए विशेष तौर पर फिल्म वेन हरि गाट मैरिड की स्क्रीनिंग की गयी।
यूनीसेफ इंडिया और बीबीसी मीडिया एक्शन इंडिया ने मंगलवार को सामाजिक बदलाव के संदेश को समेटे किशोरों पर आधारित एक टी.वी सीरियल का शुभारंभ किया। इस सीरियल के कथानक में किशोरों की समस्याओं और उनके खिलाफ कोशोरों के खड़े होने को बेहद ही रोचक तरीके से पेश किया गया है।
रिची मेहता की बेहद जीवंत और दिल को छू लेने वाली डॉक्यूमेंट्री इंडिया इन ए डे उन अनोखे नाम वाली फिल्मों में शुमार है जिन्हें 41वें टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखाया जाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कैबिनेट विस्तार से पहले अपने मंत्रियों और सांसदों का एक स्क्रीनिंग टेस्ट लिया। जिसमें पार्टी के महज दस सासंद ही 100 में 100 अंक हासिल कर सके। वोटरों की राय, संसद और मंत्रालय में कामकाज के आधार पर टेस्ट में ग्रेडिंग दी गई। सूत्रों के अनुसार इस टेस्ट के बाद ही पीएम मोदी और शाह ने योग्य नेताओं को मंत्री पद से नवाजा।
देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ पुरस्कार लौटाने के तरीके पर असहमति जताते हुए मशहूर अभिनेता कमल हासन ने कहा कि पुरस्कार वापस करना इस समस्या का कोई समाधान नहीं है क्योंकि ध्यान आकर्षित करने के और भी तरीके हैं।
गाय माता ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके दिन कभी बहुरेंगे। बहुरेंगे भी तो ऐसे कि जीते जी उन्हें कुछ भी हो जाए पर मर जाने के बाद उनके चमड़े और मांस पर सियासत होगी। गोमांस फिलफक्त का सबसे बड़ा मुद्दा है।
2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म मुजफ्फरनगर बाकी है काफी चर्चा में रही है। यह फिल्म दंगे के दौरान के हालात और वहां के स्थानीय लोगों की भावनाओं का बखूबी इजहार करती है। फिल्म के जरिये उन तत्वों की तरफ इशारा किया गया है जो मुजफ्फरनगर के हालात के जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि इस फिल्म का प्रदर्शन कई संगठनों के गले नहीं उतर रहा है। कई बार फिल्म के प्रदर्शन को बलपूर्वक रोकने की कोशिश की गई। ऐसे ही दमनकारी आक्रमणों के प्रतिरोध में फिल्म की टीम और अन्य कई संगठनों ने मिलकर एक ही दिन पूरे देश में फिल्म का प्रदर्शन किया।