राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव ने रिलायंस जियो की सस्ती डाटा स्कीम पर निशाना साधते हुए सवालिया लहजे में कहा कि गरीब डाटा खाएगा या आटा?
यूपी में चुनाव से पहले दलबदल का माहौल तो है ही। परिवार को भी राजनीति में लॉन्च करने की शुरूआत हो गई है। यूपी के मंत्री आजम खान ने अपने बेटे अब्दुल्ला खान को राजनीति में उतारने की घोषणा कर दी है।
उत्तर प्रदेश में मंत्रियों का कोई जवाब नहीं। यहां की अखिलेश सरकार के मंत्रियों ने पॉकेट मनी के नाम पर 8.78 करोड़ रुपए उड़ा दिए हैं। चार साल के दौरान इसमे से सबसे ज्यादा खर्च अरुण कुमार कोरी और आजम खां ने किया है। एक तरफ जहां दोनों ने पॉकेट मनी के नाम पर सरकार के 22.93 लाख और 22.86 लाख खर्च किए वहीं सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई यानी अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव ने पॉकेट मनी के नाम पर एक पैसा नहीं लिया।
भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने अपने रवैये पर कायम रहते हुए मंगलवार को आरोप लगाया कि नरसिंह यादव पर डोपिंग के कारण चार साल का प्रतिबंध लगने के लिए साई और नाडा के कुछ जूनियर अधिकारी जिम्मेदार हैं।
उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी में अभी हाल ही में लौटे अमर सिंह पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि सिंह ने पार्टी में मुलायम सिंह यादव के करीबी लोगों को अपमानित किए जाने का आरोप लगाते हुए राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की धमकी दी है।
डोप परीक्षण में नाकाम रहने के कारण ओलंपिक खेल गांव से बाहर करने से हताश भारतीय पहलवान नरसिंह यादव को जब पता चला था कि खेल पंचाट (कैस) ने उन पर चार साल का प्रतिबंध लगा दिया है तो वह बेहोश हो गये थे।
पहलवान नरसिंह यादव को राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी से मिली क्लीन चिट को खेल पंचाट द्वारा खारिज किये जाने के बाद भारतीय ओलंपिक संघ ने उसे ओलंपिक से बाहर करने और चार साल के प्रतिबंध के लिये अग्यात हमवतनों को दोषी ठहराया है।
खेल पंचाट के फैसले के बाद रियो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने का पहलवान नरसिंह यादव सपना टूट गया लेकिन उन्होंने आज कहा कि वह अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।
रक्षाबंधन पर उत्तर प्रदेश की सियासत के अनोखे रंग देखने को मिले। राजनैतिक अनबन के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बंधन के इस पर्व में अपने चाचा और सरकार में मंत्री शिवपाल यादव के घर पहुंचे।
खेल पंचाट की समिति पूछ रही थी कि भारतीय कानून के तहत अभी तक दोषियों को सजा क्यों नहीं दी गई। यह सिर्फ गिरफ्तारी की बात नहीं थी बल्कि वे जानना चाहते थे कि क्या दोषी को किसी तरह की सजा मिली है। यदि आज गुनहगार जेल में होता तो फैसला हमारे पक्ष में आ सकता था।