'आवारा भीड़ के खतरे' नामक शीर्षक के अपने निबंध में हिन्दी साहित्य जगत के मूर्धन्य निबंधकार हरिशंकर परसाई जी लिखते हैं, "दिशाहीन, बेकार, हताश, नकार वादी और विध्वंस वादी युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती। इसका उपयोग खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति या समूह कर सकते हैं। इसी भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी जैसे लोगों ने किया था।"
पीएम मोदी जिस समय अहमदाबा में गोरक्षा के नाम पर हत्या को अस्वीकार्य बता रहे थे, करीब उसी वक्त झारखंड में हिंसक भीड़ ने कथित रूप से प्रतिबंधित मांस ले जाने के नाम पर एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला।
देश में हिंसक भीड़ द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की बढ़ती घटनाओं के विरोध में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार अवार्ड लौटा दिया है।
देश में उन्मादी भीड़ ने हिंसा की कई काली रेखाएं खींच दी है। पहले उन्मादी भीड़ ने एक युवक को मौत के हवाले कर दिया। उस दौरान किसी के हाथ मदद के लिए आगे नहीं बढ़े। अब विडबंना है कि कोई गवाह भी सामने नहीं आ रहा है।
एसआईटी की विशेष अदालत ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसायटी में हुए नरसंहार में षडयंत्र के किसी भी पहलू से इनकार करते हुए कहा कि कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी द्वारा चलाई गई गोलियों ने भीड़ को उकसाया और वह गुस्सा हो गई, नतीजन इतने बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं। अदालत ने हालांकि कहा कि गोलीबारी के कारण भीड़ की इस करतूत को माफ नहीं किया जा सकता है।
नेताओं की आवाजाही और इलाके में व्याप्त तनाव के बीच दादरी के बिसाहड़ा में गोमांस की अफवाह पर मारे गए अखलाक के परिवार ने अपना गांव छोड़ दिया है। परिवार अब दिल्ली में एयरफोर्स की एक रिहायशी कॉलोनी में रहेगा।