नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफ्रेसर अमर्त्य सेन ने अपने नाम ‘अमर्त्य’ से अपनी बात शुरू करते हुए बताया कि कैसे गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने उनका नाम रखा और अपने चाचा जोतिर्मय सेन के अंग्रेजों की गुलामी के प्रति संघर्ष जारी रखा ताकि देश आजाद हो सके। लेकिन क्या वाकई देश वैसा ‘आजाद’ हुआ है। यह बात उन्होंने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के राजेन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला में कहे। उन्होंने इंडियन पीनल कोड से बात शुरू करते हुए अभिव्यक्ति की आजादी के संदर्भ में बहुत सी बाते रखीं।
‘कभी जीवन का सर्वांगीण विकास करने वाली शिक्षा आज तरक्की के नाम पर पूंजीवाद की गिरफ्त में है। संस्कारों की पहली पाठशाला घर-परिवार थे, जो अब सन्नाटे फांक रहे हैं और पाठशालाएं गोडाउन बन गई हैं जहां बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जा रहा है। मुनाफे का सौदा बन चुकी शिक्षा का आदर्श अब बाजार के बीहड़ में बिला गया है।’ फिल्म समीक्षक और चिंतक जयप्रकाश चौकसे ने इस आशय के विचार खंडवा में आयोजित वनमाली व्याख्यानमाला में व्यक्त किए।