निर्देशक अश्वनी अय्यर तिवारी विज्ञापन फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। पहली बार उन्होंने फीचर फिल्म निर्देशित की है। मां-बेटी के रिश्ते को उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से दिखाया है।
बिहार विधानसभा चुनाव में पिछड़ा वर्ग को मिले आरक्षण के एक मुद्दे ने देश की सियासत ही बदल दी। चुनाव के दौरान जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा के बयान की जो मतदाताओं में प्रतिक्रिया हुई, उसे देखते हुए भाजपा और राजग के साथ खड़े पिछड़े वर्ग के नेता सियासी अहमियत समझ अब इस वर्ग के हितों की बात खुलकर करने लगे हैं। हालांकि भाजपा नेताओं ने बार-बार इस बात को दुहराया कि आरक्षण की समीक्षा नहीं की जाएगी लेकिन इसका खास सियासी असर नहीं पड़ा।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के निधन के बाद नए अध्यक्ष के चयन की अटकलें तेज हो गई हैं। बोर्ड के लिए हालांकि नए अध्यक्ष का चुनाव आसान तो नहीं होगा, लेकिन इस पद के लिए राजीव शुक्ला, गौतम राय और दिल्ली के सी. के. खन्ना के नाम को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई। भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेताओं की बैठक में भाजपा ने साफ कर दिया कि वह 150 से 170 सीटों पर चुनाव लड़ेगी बाकी सीटें सहयोगी दलों के लिए रहेगी।
भारत एक गरीब देश है जैसे निबंध रटने वाले बच्चों को अब यह बताना होगा कि भारत गरीब नहीं रह गया है। कारण? बॉलीवुड पर नजर डाल लें तो पता चलेगा कि भारत में इतना अनाप-शनाप पैसा हो गया है कि ‘ऑल इज वेल’ जैसी फिल्म बनाई जा सकती है।
पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली को न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा समिति के आदेश का अध्ययन करने और छह सप्ताह के अंदर अपनी सिफारिशें देने के लिए गठित बीसीसीआई के चार सदस्यीय कार्यसमूह में शामिल किया गया है। आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला इस समिति के अध्यक्ष होंगे।
भले ही सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने आईपीएल की दो टीमों चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया हो मगर आईपीएल के चेयरमैन राजीव शुक्ला की मानें तो अगले साल दोनों ही टीमें आपको आईपीएल में खेलती दिखाई दे सकती हैं।
सितंबर 1947 में बक्सर, बिहार में जन्में उपेन्द्र कुमार सन 1972 की भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति, संसदीय कार्य, श्रम एवं रक्षा मंत्रालयों के विभिन्न विभागों में 35 वर्षों से अधिक सक्रीय सेवा में रहे। उनकी पुस्तकों में बूढ़ी जड़ों का नवजात जंगल, मैं बोल पड़ना चाहता हूं, चुप नहीं है समय, प्रतीक्षा में पहाड़, गांधारी पूछती है, उदास पानी, प्रेम प्रसंग, गहन है यह अंधकार प्रमुख है। उन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं।