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कविता - जन्नत न जाने पाए

कविता - जन्नत न जाने पाए

सितंबर 1947 में बक्सर, बिहार में जन्में उपेन्द्र कुमार सन 1972 की भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति, संसदीय कार्य, श्रम एवं रक्षा मंत्रालयों के विभिन्न विभागों में 35 वर्षों से अधिक सक्रीय सेवा में रहे। उनकी पुस्तकों में बूढ़ी जड़ों का नवजात जंगल, मैं बोल पड़ना चाहता हूं, चुप नहीं है समय, प्रतीक्षा में पहाड़, गांधारी पूछती है, उदास पानी, प्रेम प्रसंग, गहन है यह अंधकार प्रमुख है। उन्हें कई पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं।
वृत्तचित्र व्यवसाय के व्यवधान

वृत्तचित्र व्यवसाय के व्यवधान

बहुत दिन नहीं बीते हैं, जब बीबीसी के लिए लेजली उडविन द्वारा बनाए गए एक वृत्तचित्र पर खूब हंगामा हुआ। संसद से लेकर सडक़ तक विरोध के स्वर गूंजे और शायद इसी बहाने पहली बार भारत में वृत्तचित्र पर इतनी बात हुई।
‘कनहर’ पर कहरः पुलिस की गोली से छलनी आदिवासी

‘कनहर’ पर कहरः पुलिस की गोली से छलनी आदिवासी

सोनभद्र में 38 वर्षों से लंबित कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर डूब क्षेत्र के ग्रामीणों और जिला प्रशासन में खूनी संघर्ष। प्रशासन ने की परियोजना स्थल की नाकाबंदी। धरनारत ग्रामीणों पर हुई गोलीबारी की जांच करने पहुंचे स्वतंत्र जांच दल को परियोजना निर्माण समर्थकों ने दो घंटे तक बनाया बंधक।
विरह में दो मंत्र

विरह में दो मंत्र

सर्वेश सिंह की कविताएं आध्यात्म और वास्तविक जीवन के ईद-गिर्द खूबसूरत ताना-बाना बुनती हैं। उनके द्वारा लिखे गए कई लेखों पर तीखी बहसें भी हुई हैं। उनकी कहानी ज्ञान क्षेत्रे, कुरूक्षेत्रे को बहुत सराहना मिली थी। सर्वेश फिलवक्त डीएवीपीजी कॉलेज, बनारस में हिंदी विभागाध्यक्ष हैं।
रामदेव का कैबिनेट दर्जा लेने से इनकार

रामदेव का कैबिनेट दर्जा लेने से इनकार

योग गुरु रामदेव ने मंगलवार को हरियाणा सरकार की ओर से की गई कैबिनेट मंत्री के दर्जे की पेशकश को ठुकराते हुए कहा कि वह मंत्री पद के आकांक्षी नहीं हैं और बाबा ही रहना चाहते हैं।
कविता - सुशील उपाध्याय

कविता - सुशील उपाध्याय

उपाध्याय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्याल में प्राध्यापक हैं। अध्यापन से पहले वह प्रखर पत्रकार रह चुके हैं। अमर उजाला और हिंदुस्तान अखबार में काम करते हुए उन्होंने रिपोर्टिंग के क्षेत्र में जो भी विविधताएं महसूस कीं उन्हें बाद में कविता में ढाला। उनकी खबरों की समझ और कविता की संवेदना मिल कर जो काव्य पैदा करती है, वह कविता को नई भाषा देती है।
कविता - पद्माशा झा

कविता - पद्माशा झा

डॉ. पद्माशा झा की कविताओं में विविधता के रंग मिलते हैं। उनकी कई रचनाएं प्रकाशित हैं। प्रमुख रचनाओं में, ‘भाषा से नंगे हाथों तक’, ‘पोखर’, ‘पलाश वन’, ‘मत बांधो आकाश’। सभी काव्य संग्रह हैं। साथ ही ‘छोटे शहर की शकुंतला’ और ‘तुम बहुत याद आओगे’ नाम से कथा संग्रह। कविता-कहानी के इतर ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस एंड मुस्लिम’, ‘मौलाना अबुल कलाम आजाद एंड नेशन’ नाम से इतिहास की किताबें भी हैं। शीघ्र ही ‘बिहार का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास’ नाम से पुस्तक प्रकाशित होने वाली है। डॉ. झा को नागालैंड ओपन विश्वविद्यालय द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया है। वह बिहार विधान परिषद की सदस्य एवं मिथिला विश्वविद्याल की कुलपति रह चुकी हैं।
अनिल करमेले की कविताएं

अनिल करमेले की कविताएं

2 मार्च 1965 को छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश में जन्मे कवि अनिल करमेले की कविताएं सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। पहल, हंस, ज्ञानोदय, वागार्थ, वसुधा, कथादेश, जनसत्ता, इंडिया टुडे, शुक्रवार, पब्लिक एजेंडा, दैनिक हिन्दुस्तान, नई दुनिया, लोकमत समाचार, भास्कर आदि में वह प्रमुखता से छपे हैं। साथ ही लेख एवं समीक्षाएं भी प्रकाशित हुई हैं। ‘ईश्वर के नाम पर’ उनकी पहली किताब प्रकाशित हुई थी। इसी पुस्तक पर उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी का "दुष्यंत कुमार" पुरस्कार मिला। फिलवक्भात वह भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) के अंतर्गत महालेखाकार लेखापरीक्षा कार्यालय में सेवारत हैं।
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