इस चुनाव में लोगों को राजनैतिक पार्टियों से जीवन स्तर में सुधार करने के विकल्पों के बारे में पूछना चाहिए, वरना अगले पांच साल भी जाति, धर्म के टंटे में उलझे रह जाएंगे
यह भारत की मूल संवैधानिक भावना के खिलाफ है और पूर्वोत्तर के जातीय समुदायों में डर पैदा करता है और फिर इसमें कुछ समूहों के प्रति भेदभाव भी निहित है, इसी वजह से अदालती समीक्षा में नहीं टिक पाएगा