फिल्म मसान के लिए तारीफ बटोर चुकी रिचा चड्ढा का मानना है कि समाज में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी अब अभिनेताओं और कलाकारों के हाथ में है क्योंकि राजनीतिज्ञ ऐसा करने में बुरी तरह विफल रहे हैं।
‘ संसद एक मरकज अदारा है लेकिन वहां बैठे लोग नफरत उगल रहे हैं। खासकर मुस्लिम अकिलियत के खिलाफ। साल भर से आग उगलने का यह सिलसिला जारी है और सरकार मुंह में बताशा डालकर बैठी है। इसका मतलब समझा सकता है। लेकिन इस देश में धर्मनिरपेक्षता का दस्तूर जारी रखने के लिए हम मैदान में आए हैं। इसके लिए 12 मार्च को दिल्ली में लगभग 40,000 हिंदू, मुसलमान, दलित और ईसाई धर्म के लोग इक्ट्ठा होकर अमन का पैगाम देंगे।‘ यह कहना है जमीअत-उलमा-ए-हिंद के सदर मौलाना सईद अरशद मदनी का।
दालों की बढ़ती कीमतों और दलहन आयात पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार खेसारी दाल पर 55 साल पहले लगा प्रतिबंध हटाने की कवायद में जुट गई है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक पैनल ने इस दाल को खाने के लिए सुरक्षित बताया है और बारे में अंतिम फैसला खाद्य नियामक एफएसएसएआई को करना है। लेकिन स्वास्थ्य से जुड़े इस अहम फैसले को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री और हाजीपुर से सांसद रामविलास पासवान का नववर्ष का ग्रीटिग कार्ड नहीं पहुंचाने के मामले में तीन डाककर्मियों को निलंबित कर दिया गया है।
केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने कहा है कि भारतीय उप महाद्वीप क्षेत्र से आतंकवाद को उखाड़ फेंकने के लिए भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का परिसंघ बनाया जाना चाहिए। पासवान ने यहां पीटीआई-भाषा से कहा, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का एक परिसंघ जिसकी यूरोपीय संघ के यूरो की तर्ज पर एक मुद्रा हो, का गठन किया जाना चाहिए ताकि समस्याओं का समाधान निकाला जा सके।
लोकसभा ने आज भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक, 2015 को ध्वनिमत से पारित कर दिया जिसमें वस्तु, प्रसंस्करण, पद्धति और सेवाओं के मानकीकरण, एकरूपता निर्धारण और गुणवत्ता सुनिश्चित करने एवं विकास जैसे कार्य के लिए एक राष्ट्रीय मानक निकाय स्थापित करने की बात कही गई है।
पहली बार मैं किसी मामले में अमित शाह से खुद को पूरी तरह सहमत पाता हूं। यह कि बिहार चुनाव केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और कामकाज पर जनमत संग्रह नहीं है।
बिहार में दो चरण का मतदान होने के बाद मतदान के रुझानों और विभिन्न जातों की गोलबंदी से एक बड़ा सवाल उभर रहा है कि क्या यह विधानसभा चुनाव अगड़ा बनाम पिछड़ा बनता जा रहा है।
सांप्रदायिक राजनीति, अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ते हमलों और बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। अब तक विभिन्न भाषाओं के करीब 15 साहित्यकार पुरस्कार लौटा चुके हैं।