पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने जीडीपी आंकड़ों को लेकर विशेषज्ञों पर सवाल उठाने के लिए मोदी सरकार को दुनिया की सबसे बड़ी बुद्धिजीवी-विरोधी सरकार बताया और कहा कि अर्थव्यवस्था को नोटबंदी के विनाशकारी प्रभाव से पार पाने में 12 से 18 महीने का समय लगेगा।
कांग्रेस ने जीडीपी आंकड़ों को हैरानी भरा और बेहद संदेहास्पद बताया है जो कि भारत की वैश्विक साख को खत्म कर सकता है और साथ ही प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया।
अपने घर में शेर बनकर रहने का दावा किया जा सकता है, लेकिन दुनिया के सामने शक्ति प्रदर्शन किए बिना कोई शेर नहीं मानेगा। भारत की आर्थिक स्थिति इस समय उसी तरह है। सरकार विकास दर के आंकड़ों और मेक इन इंडिया के नारे के साथ विभिन्न संपन्न देशों को आमंत्रित कर रही है। लेकिन विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिजनेस करने की स्थितियां खराब हैं और कई अन्य देशों के मुकाबले हम रैंकिंग में पिछड़ गए हैं।
कानून मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 458 न्यायाधीशों की कमी है। ये आंकड़े ऐसे समय में आए हैं जब न्यायपालिका और सरकार के बीच हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की भावी नियुक्ति को दिशा देने वाले एक दस्तावेज के विभिन्न उपबंधों को लेकर मतभेद हैं।
दिल्ली महिला आयोग ने राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़े नहीं देने पर पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी को अपने समक्ष पेश होने के लिए समन जारी किया है।
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार को झटका लगा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर घटकर 7 फीसदी रह गई है। जबकि इससे पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में यह आंकड़ा 7.5 फीसदी तक पहुंच गया था।
पिछले साल भारतीय जनता पार्टी केंद्र में सत्ता में क्या आई 1990 के दशक के मजहबी और जातिगत टकराव के गड़े मुर्दे मानो फिर से उखाड़े जाने लगे। एक तरफ जनगणना में धार्मिक समुदायों की जनसंख्या वृद्धि के चुनिंदा आंकड़े पूर्वाग्रह के रंग में रंगकर धीरे-धीरे सामाजिक और मुख्यधारा मीडिया में टपकाए जाने लगे और दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल और उसके परिवार के तरह-तरह के गेरुआधारी ‘पूतों फलों’ और ‘घर वापसी’ के भड़काऊ भाषणों के जरिये बहुसंख्यक समुदाय का भयादोहन कर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उन्माद पैदा करने की कोशिश करने लगे। नतीजतन देश में कई जगह अल्प तीव्रता वाले सांप्रदायिक उपद्रव होने लग गए, खासकर उन राज्यों में जहां विपक्ष की सरकारें थीं और आगे चुनाव होने थे।
केंद्र सरकार ने धर्म आधारित जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए लेकिन अभी जाति आधारित जनगणना के नतीजे नहीं जारी हुए। जबकि कई राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी करने की मांग कर रहे हैं।