भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पारूपल्ली कश्यप सेमीफाइनल में आठवीं वरीयता प्राप्त मोमोटा कैंतो से हारकर शनिवार को इंडोनिशया ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट से बाहर हो गए हैं।
लोकसभा में मंगलवार को भूमि अधिग्रहण विधेयक को संयुक्त समिति को भेजने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिलने के साथ अब यह तय हो गया है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस विधेयक को लेकर जोर आजमाइश अब संसद के मानसून सत्र तक टल गई है।
गुजरात स्थित एक अनुसंधान संस्थान ने पदार्थ के चौथे रूप प्लाज्मा को स्थिर अवस्था सुपर कंडक्टिंग टोकामक (एसएसटी-।) में रोक कर रखने में अहम सफलता मिलने का दावा किया है।
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही पार्टी में सब ठीक हो जाएगा। लगातार उनके ट्वीट और फेसबुक पेज के अपडेट्स बता रहे हैं कि उन्हें भरोसा है कि इस विष से अमृत निकलेगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य और बांग्लादेश के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए गुरुवार को यहां तीन दिवसीय दौरे पर पहुंची। उनके दौरे से तीस्ता जल बंटवारा करार और भूमि सीमा करार पर आगे बढ़ने की उम्मीदें है। सन 2011 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उनका यह पहला दौरा है।
राष्ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।