कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कर्नाटक के आईएएस अधिकारी डी.के. रवि की रहस्यमयी मौत के मामले की सीबीआई जांच कराने की सलाह राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को दी है।
कर्नाटक के ईमानदार आइएएस अफसर डीके रवि की मौत का मामला राज्य की विधानसभा से लेकर देश की संसद तक में गूंज चुका है। राजनीतिक पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है लेकिन रवि की मौत के राज से अब तक पर्दा नहीं हट पाया है।
कर्नाटक के आइएएस अधिकारी डीके रवि की मौत की सीबीआइ से जांच कराने की मांग आज संसद के दोनों सदनों में उठने पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से ऐसा कहे जाने पर केंद्र तुरंत इसका आदेश देगा।
कर्नाटक में आइएएस अफसर डीके रवि की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत की वजह से विधानसभा में हंगामा रहा। भारत जनता पार्टी ने रवि की मौत के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश की है। भाजपा का कहना है कि राज्य सरकार ईमानदार अफसरों की रक्षा नहीं कर पा रही है।
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने अपनी नई कम्यूनिटी गाइडलाइंस जारी की है। इन गाइडलाइंस के मुताबिक घोषित तौर पर अस्वीकृत सामाजिक व्यवहार पर अंकुश लगाने की तैयारी है। इनमें नग्नता, हिंसा, नफरत फैलाने वाले संदेशों और विवादास्पद मुद्दों पर रोक लगाने की बात कही गई है। लेकिन फेसबुक ने ये गाइडलाइंस दुनियाभर के सत्ता प्रतिष्ठानों की तरफ से पड़ने वाले दबावों के बाद जारी की हैं। इनका खतरा यह है कि विभिन्न सरकारें जिन संदेशों को अपने हित में नहीं पाएंगी उनको रोकने की कोशिश कर सकती हैं।
नई फिल्म एनएच 10 की हिंसा प्रतिरोध की नहीं प्रतिशोध की हिंसा है। निर्देशक नवदीप सिंह ने मूल कहानी को पृष्ठभूमि में रख कर उस कहानी के बहाने कई बातें साधने की कोशिश की है। यह प्रयोग नया तो नहीं है पर हाल के सिनेमा में सीधी-सीधी बातें कह देने से अलग जरूर है।
राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।