फरवरी 2014 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने वाले हरीश रावत राज्य के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं। लंबे समय के राजनीतिक जीवन में रावत ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बनने के बाद माना जा रहा था कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो रावत को कमान मिल सकती है। लेकिन सियासी कारणों सेे रावत को देर से राज्य की कमान मिली। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जब सरकार बनी तो विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद दिया गया। उस समय रावत केंद्र सरकार में मंत्री थे। विजय बहुगुणा को बीच कार्यकाल से ही हटाकर हरीश रावत को राज्य की कमान दी गई। दो साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हरीश रावत से विभिन्न मुद्दों पर आउटलुक के विशेष संवाददाता ने देहरादून के बीजापुर गेस्ट हाउस में विस्तार से बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश-
दालों की बढ़ती कीमतों और दलहन आयात पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार खेसारी दाल पर 55 साल पहले लगा प्रतिबंध हटाने की कवायद में जुट गई है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक पैनल ने इस दाल को खाने के लिए सुरक्षित बताया है और बारे में अंतिम फैसला खाद्य नियामक एफएसएसएआई को करना है। लेकिन स्वास्थ्य से जुड़े इस अहम फैसले को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
केंद्र सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम और आर्थिक विकास के तमाम वादे के विपरीत देश के निर्यात में लगातार 13वें महीने गिरावट दर्ज की गई है। वैश्विक मांग में नरमी के बीच दिसंबर 2015 में भारत का निर्यात 14.75 प्रतिशत गिरकर 22.2 अरब डालर रह गया। जबकि व्यापार घाटा बढ़कर चार महीने के उच्चतम स्तर 11.6 अरब डालर पर पहुंच गया है। जबकि पिछले साल इसी अवधि में व्यापार घाटा 9.1 अरब डॉलर था।
देश भर में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकाराें द्वारा उठाए जा रहे कदमों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सख्त रुख दिखाया है। स्वराज अभियान की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने केंद्र और 11 राज्यों को अगले 10 दिनों के भीतर इस मुद्दे पर जवाब देने को कहा है।
भूखमरी और कंगाली के बीच खुदकुशी को मजबूर भारतीय किसानों की दस्तान पुरानी पड़ चुकी है। अब नई तस्वीर देखिए। देश के प्रमुख अखबारों के पहले पन्नों पर सपरिवार मुस्कुराता किसान। हाव-भाव से गरीब लेकिन चेहरे पर 'खुशहाल किसान' वाली चिर-परिचित स्माइल। बच्चा नंगे पांव लेकिन मुस्कान भरपूर। ये फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग का किसान है जो कृषि संकट भूल नेट निरपेक्षता की बहस को निपटज्ञने का मोहरा बन गया है। ये काम भारत का किसान ही कर सकता है।