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Search Result : "कृषि उन्नत मेला"

मत हथियाइए कृषि भूमि और चरागाह

मत हथियाइए कृषि भूमि और चरागाह

भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है, हालांकि भारी विरोध को देखते हुए मोदी सरकार सहमति, मुआवजे और निजी क्षेत्र के लिए अधिग्रहण के प्रावधानों पर थोड़ी नरम पड़ी। अब गेंद राज्य सभा के पाले में है। जहां विपक्ष का बहुमत है। विपक्ष और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के शिवसेना जैसे सहयोगी, विधेयक के विरोध की जमीन पर बने रहें चाहें तो आपसी सहमति अथवा दोनों पक्षों की थोड़ी नरमी से विधेयक पारित हो जाए। इस मसले पर कई मत हैं। थोड़े और संशोधनों के पक्षधर तो कुछ इस विधेयक को पूरी तरह नकार देने के। भाजपा की विचारधारा वाले के. एन. गोविंदाचार्य भी इस मसले पर भाजपा सरकार से अलग राय रखते हैं। अण्णा हजारे और उनके सहयोगी संगठनों को मोदी सरकार की नई भूमि अधिग्रहण नीति के विरोध में गोलबंदी के लिए प्रेरित करने में गोविंदाचार्य ने अहम भूमिका निभाई है।
आम आदमी से दूरी, विकास है जरूरी

आम आदमी से दूरी, विकास है जरूरी

खाद्य मूल्य में गिरावट जैसे बाहरी कारकों के अलावा कृषि क्षेत्र की कुछ समस्याएं इस साल के कमजोर मॉनसून से भी बढ़ी हैं। यह भी एक तत्व है कि पूर्ववर्ती सरकार की गलत नीतियों के कारण कृषि क्षेत्र की दुर्दशा हुई है। सन 2014 में पोषक तथ्व आधारित सद्ब्रिसडी (एनबीएस) शुरू होने से न सिर्फ उर्वरक मूल्य में वृद्धि हुई बल्कि मिश्रित उर्वरक के इस्तेमाल में असंतुलन भी पैदा हुआ। नतीजतन कृषि में मुनाफा कम हो गया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था बदतर हो गई।
दिल्ली पुस्तक मेला: पाठक कम लेखक ज्यादा

दिल्ली पुस्तक मेला: पाठक कम लेखक ज्यादा

विश्व पुस्तक मेले में इस बार हिंदी लेखकों की आमद ने पाठकों को भी पछाड़ दिया है। देश के कोने-कोने से पधारे लेखकों को देख कर लगता है कि हिंदी साहित्य की परंपरा बहुत समृद्ध हो रही है। किताबों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि एक-एक लेखक साल भर में कम से कम पांच किताबें लिखने का माद्दा रखता है।
विश्व पुस्तक मेले में रौनक

विश्व पुस्तक मेले में रौनक

किताब प्रेमी हर साल इन्तज़ार करते हैं कि कब किताबों का मौसम आएगा और वे न सिर्फ किताबों की दुनिया में खो जाएंगे बल्कि भागम भाग के इस दौर में कुछ पल किताबों की जिल्द की छांव में सुस्ता भी लेंगे। पुस्तक मेला नएपन के लिए जाना जाने लगा है।
पुस्तकों के दीवाने

पुस्तकों के दीवाने

नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में जिगर मुरादाबादी और पवित्र भूमि पर पुस्तकों की खुशबुओं से सुवासित करने का सात्विक कार्य ‘पुस्तक मेला’ के रूप में आयोजित किया गया।
प्रकृति से छीना तो वापस भी करो

प्रकृति से छीना तो वापस भी करो

हिमाचल प्रवास के दौरान कहीं वैसे रसीले आडू भी नहीं दिखे जैसे हमने राज्य में घुसने के ठीक पहले पंचकुला में लिए थे। और लाल-लाल चेरी ने हमें सिर्फ नारकंडा के आसपास राजमार्ग पर लुभाया। पहाड़ी ढलानों पर सेबों के बागान-दर-बागान दिखते चले गए और हम लोगों से पूछते रहे, कहां गए, कहां गए हिमाचल के मशहूर सेब? शायर मिलते तो कह देते, सेबों को किन्नौरी बालाओं के रुखसार की रंगत में देखिए। लेकिन हमें पता चला, हिमाचल में इस बार फलों की पैदावार में जबर्दस्त गिरावट आई है। फलों में वहां मुख्य पैदावार सेब और नाशपाती की होती है और इन दोनों का उत्पादन इस वर्ष 50-60 प्रतिशत कम हुआ है।
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