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मुरादाबाद के ये डॉक्टर कोरोना संदिग्धों का रखते हैं ख्याल, सैनेटरी पैड से लेकर दूध तक कराते हैं उपलब्ध

मुरादाबाद के ये डॉक्टर कोरोना संदिग्धों का रखते हैं ख्याल, सैनेटरी पैड से लेकर दूध तक कराते हैं उपलब्ध

बत्तीस वर्षीय नितिन यादव उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के क्वारेंटाइन सेंटर में कोरोनो संदिग्धों...
रिपब्लिक टीवी को यह भी ख्याल नहीं रहा कि एक मृत बच्चे का पिता क्या महसूस करता है!

रिपब्लिक टीवी को यह भी ख्याल नहीं रहा कि एक मृत बच्चे का पिता क्या महसूस करता है!

वीडियो में दिख रहा है कि काला कपड़ा पहनी रिपब्लिक टीवी की महिला पत्रकार प्रद्युम्न के पिता विशाल ठाकुर के साथ कैसे दुर्व्यवहार कर रही है।
मुसलमान भाजपा को वोट नहीं करते, फिर भी पार्टी उनका ख्याल रखती है: रविशंकर प्रसाद

मुसलमान भाजपा को वोट नहीं करते, फिर भी पार्टी उनका ख्याल रखती है: रविशंकर प्रसाद

केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि हमें मुसलमानों का वोट नहीं मिलता, लेकिन क्या हमारी सरकार उन्हें उचित सुविधा नहीं दे रही ?
पिता की योगी को नसीहत, मुस्लिम महिलाओं के वोटों का ख्याल रखना

पिता की योगी को नसीहत, मुस्लिम महिलाओं के वोटों का ख्याल रखना

उत्तर प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट ने अपने बेटे को मुसलमानों से भेदभाव नहीं करने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि बुर्का पहने मुस्लिम महिलाओं ने भी योगी को वोट दिया है इसलिए योगी को उनका ध्यान रखना चाहिए और उनको सभी धर्म के लोगों का दिल जीतना चाहिए।
‘भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि मजहब को भाषा की जरूरत होती है’

‘भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि मजहब को भाषा की जरूरत होती है’

उर्दू जबान की तरक्की के लिए फिक्रमंद साहित्यकारों और शिक्षाविदों का मानना है कि इस भाषा को सिर्फ मुसलमानों की जबान के तौर पर पेश कर एक दायरे में सीमित करने की कोशिशें की जा रही हैं जबकि असलियत यह है कि यह पूरे देश में और विभिन्न समुदायों में बोली जाती है और इसके विकास में सभी का अहम योगदान है। इसके अलावा उर्दू और हिंदी छोटी और बड़ी बहने हैं और इनमें आपस में कोई टकराव नहीं है।
ऐतिहासिक मुकाम, लेखकों के इस्तीफे का बवंडर

ऐतिहासिक मुकाम, लेखकों के इस्तीफे का बवंडर

देश के सभी कोनों से, सभी भाषाओं में एक ही आवाज उठ रही है। यह अपने आप में ऐतिहासिक परिघटना है। इससे पहले इस देश में इतने बड़े पैमाने पर लेखकों-साहित्यकारों-रंगकर्मियों ने एक साथ एक ही मुद्दे पर मिलकर आवाज नहीं उठाई थी। वे सब अलग-अलग राज्यों से, अपनी-अपनी भाषाओं में एक ही स्वर बोल रहे हैं।
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