जिनीवा में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी और उनके ईरानी समकक्ष ने तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर गहन वार्ता की, जिसका उद्देश्य महत्वपूर्ण समय सीमा से पहले करार की राह में आड़े आ रही बाधाओं को दूर करना है।
पाकिस्तान की तरफ से 31 दिसंबर 2014 की रात भारतीय सीमा में प्रवेश करने वाली रहस्यमय नौका को लेकर नौसेना अधिकारियों और भारत सरकार के विवादास्पद बयानों से रहस्य और गहराता जा रहा है।
गुजरात दंगों के ख़िलाफ़ निरंतर सक्रिय रहने वाली ऐक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को कानूनी पचड़ों में फंसाये जाने को लेकर मुखर विरोध शुरू हो गया है। देशभर के कई जाने-माने बुद्धिजीवियों ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए तीस्ता के पक्ष में अभियान शुरू कर दिया है। अब तक इस अभियान से हज़ारों लोग जुड़ चुके हैं।
निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।