परिजन और निकट के रिश्तेदारों द्वारा यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के बीच राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने पॉक्सो ई-बॉक्स पहल शुरू की है जिसके जरिये पीड़ित बच्चे अपनी शिकायत सीधे आयोग तक पहुंचा सकते हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पिछले पांच महीनों में मध्य प्रदेश के शेओपुर जिले में कुपोषण संबंधी बीमारियों के कारण 116 बच्चों की मौत की खबरों पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।
गुजरात में गाय को लेकर दलितों की पिटाई का एक और मामला सामने आया है। कुछ लोगों ने मरी हुई गाय का शव उठाने से इंकार करने पर एक दलित परिवार की पिटाई की। जिस परिवार की पिटाई हुई उसमें एक प्रेग्नेंट महिला भी शामिल थी। यह मामला शनिवार को सामने आया है। पुलिस ने इस मामले में 6 लोगों को गिरफ्तार किया।
मुस्लिम, ईसाई और दलित संगठनों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से अनुरोध किया है कि वह कमजोर तबकों के लोगों की संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में प्रभावी भूमिका निभाएं। इन समुदायों का कहना है कि केंद्र मे एनडीए सरकार और कुछ राज्यों में भाजपा सरकारों के आने के बाद से बड़े पैमाने पर इस समुदायों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने पार्टी का दामन छोड़कर भाजपा में गए स्वामी प्रसाद मौर्य की आज की रैली को फ्लॉप बताते हुए कहा कि भाजपा को खुद ही पछतावा हो रहा होगा कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। इस रैली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे। माना जा रहा है कि इस रैली के जरिये मौर्य अपनी ताकत दिखाना चाह रहे थे।
आज की राजनीति में दलितों के घर भोजन करने की नई परंपरा चल पड़ी है। नेताओं को इस बात का जरा भी भान नहीं कि दलित गरीब उनके भोजन आयोजन के लिए अनाज और अन्य समान कहां से लाएगा। यूपी में चल रही इस राजनीति में ताजा वाकया कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से संबंधित है।
वामपंथी दलों और दलित संगठनों के नेताओं ने शुक्रवार को राजग सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कथित गोरक्षकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया और दावा किया कि समुदाय के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं।
गुजरात में दलित समुदाय पर अत्याचार के विरोध में सूबे के दलित संगठनों ने 1 अक्टूबर को 'रेल रोको' आंदोलन की घोषणा की है। दलितों की सभा में बुधवार रात को यह फैसला किया गया।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि विश्व के करीब 60 लाख शरणार्थी बच्चों की आधी से भी कम संख्या स्कूल में पढ़ती है जिसका अर्थ यह हुआ कि वैश्विक औसत की तुलना में उनके शिक्षा प्राप्त करने की संभावना पांच गुना कम है।