कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र भी भाजपा नीत एनडीए सरकार पर जमकर हमला बोला है। लोकसभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी कड़ी आलोचना की।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बांग्लादेश के साथ थल सीमा संबंधी समझौते के क्रियान्वयन के लिए प्रस्तावित विधेयक के मसौदे को मंगलवार को मंजूरी दे दी, जिसमें पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय के साथ-साथ असम से जुड़े क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 मई से 16 मई की अपनी आगामी चीन यात्रा की आधिकारिक घोषणा मंगलवार को माइक्रोब्लॉग साइट वेइबो पर की है। मोदी ने लिख है कि वह चीनी नेतृत्व के साथ सार्थक चर्चा के लिए उत्साहित हैं।
कष्ट में पड़े लोग सरल हृदय करुणा के स्पर्श की सांत्वना के भूखे होते हैं। आत्मरत चतुराई उनके जले पर नमक छिडक़ती है। यह बात मोदी सरकार के चालाक मीडिया प्रबंधक नहीं समझ पाए। वे यह भी भूल गए कि भारतीय टेलीविजन, खासकर हिंदी टेलविजन, नेपाल के लोग भी देखते और समझते हैं।
केंद्र की मोदी सरकार अगर कारोबार को बढ़ावा देने के नाम पर श्रम कानूनों में बदलाव के अपने एजेंडे पर अड़ी रहती है तो देश की मजदूर यूनियनें इसके खिलाफ हड़ताल पर जाने से नहीं हिचकेंगी। इसमें भाजपा से जुड़ी श्रमिक यूनियनें भी शामिल होंगी। इस बारे में कोई भी फैसला 26 मई को लिए जाने की उम्मीद है।
केंद्र पर अपने हमले जारी रखते हुए असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि वह बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते (एलबीए) के दायरे से असम को बाहर करने का प्रस्ताव कर राजनीतिक फायदे की खातिर दोहरा रवैया अपना रहे हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अब रियल एस्टेट विधेयक को सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राहुल गांधी ने कहा कि सरकार रियल एस्टेट क्षेत्र का नियमन करने वाले एक विधेयक को कमजोर कर मध्यवर्गीय मकान खरीदारों के हितों के खिलाफ काम कर रही है और बिल्डरों का समर्थन करने वाला विधेयक बना रही है।
अमेरिकी कांग्रेस की ओर से गठित एक आयोग ने कहा है कि साल 2014 में भारत में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों को हिंसक हमलों, जबरन धर्मांतरण और घर वापसी जैसे अभियानों का सामना करना पड़ा है। हालांकि, भारत सरकार ने इस पर कड़ा एेतराज जताते हुए इसे खारिज कर दिया है। लेकिन मोदी राज में विश्व मंच पर भारत की छवि चमकने के दावों को तगड़ा झटका लगा है।
केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से किसानों की मदद के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। फसलों को हुए नुकसान के सर्वे की रस्म अदायगी भी जारी है। लेकिन मेहनत की कमाई लुटा चुके किसानों के हाथ से मुआवजा अभी दूर है। दरअसल, फसलों के बीमा और मुआवजे की प्रक्रिया में इतने झोल हैं कि किसान तक सिर्फ आश्वासन ही पहुंच पाते हैं।