राष्ट्रपति भवन में चाहे और बहुत कुछ हो मगर सफाई जरा कम है। हाल ही में जारी स्वच्छता अभियान रेटिंग में राष्ट्रपति भवन पिछड़ गया है। राष्ट्रपति भवन को हैदराबाद हाउस, विज्ञान भवन और जवाहरलाल नेहरू भवन ने पछाड़ा है।
नेहरू की अनेक जीवनियां मौजूद हैं जो गहन शोध के बाद लिखी गई हैं। लेकिन उनके अलावा जनश्रुतियाँ भी हैं। उनकी जो तस्वीर जनमानस में नक्श है, वह अधिकतर अफवाहों से बनाई गई है। आप साधारण जन से बात करें तो उनकी छवि एक आरामतलब,ऐय्याश,धोखेबाज,भाई-भतीजावादी नेता और कमजोर प्रशासक की ही उभरती है।
ट्विटर हैंडल @AnonGoIWPEdits के अनुसार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके पूर्वजों को लेकर धर्म संबंधी अफवाहें फैलाई जा रही हैं। यह ट्विटर हैंडल विकीपीडिया पर होने वाले एडिट्स पर नजर रखता है। इसने पाया कि तमाम बदलाव और अफवाहें भारत सरकार के आईपी एड्रेस से किए गए थे और इनमें लिखा था कि पंडित नेहरू के दादा गंगाधर नेहरू मुस्लिम थे।
दुनिया की जानी-मानी बेवरेज कंपी कोका-कोला पर भारत में जल संसाधनों के दुरुपयोग के आराेप लगे हैं। नार्वे की एक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में कोका-कोला द्वारा भारत में की जा रही जल संसाधनों की बर्बादी का खुलासा किया है। इस रिपोर्ट के आधार पर नार्वे के सरकारी पेंशन फंड पर कोका-कोला से निवेश वापस खींचने की मांग की जा रही है।
लंदन के नेहरू सेंटर में ओपी नैय्यर के गीतों से सजी शाम का आयोजन हुआ। कुल 140 सीटों वाले नेहरू सेंटर में 170 लोगों ने अर्पण कुमार और मीतल के मार्फत मुहम्मद रफी और आशा भोंसले की आवाजों को सुना। की-बोर्ड पर सुनील जाधव थे तो तबले पर केवल। गीतों से भरी इस शाम में कई लोग दूर-दूर से आए थे।
प्रफुल्ल बिदवई विलक्षण प्रतिभा के धनी पत्रकार, प्रवक्ता, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता थे। उनका अकस्मात हमारे बीच से चले जाना जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और शांति आंदोलनों के लिए एक बड़ा झटका है। आज के विपरीत समय में अपनी बेबाक शैली, सुव्यवस्थित विश्लेषण और दुस्साहस के स्तर तक जोखिम उठाने की क्षमता के चलते वे अनेक युवा और आदर्शवादी पत्रकारों के प्रेरणास्रोत रहे। उनकी वैज्ञानिक और संपूर्ण दृष्टि तथा ऐतिहासिक बोध, उनकी विश्लेषण क्षमता का मूल मंत्र रहा। इसी ने उन्हें हमेशा खास बनाए रखा और जीवनभर उनकी लेखनी की चमक यूं ही बनी रही।
वह उम्र के उस पड़ाव में हैं, जहां कांपते हाथों के साथ लड़खड़ाती जुबान से लोग अपने बीते दिनों की उपलब्धियों को गिनते-गिनवाते हैं लेकिन उनका मामला अलग है। वह खुद ही पूछते हैं, बताओ मेरी उम्र कितनी है, फिर मेरे मौन को मेरी दुविधा समझकर खुद ही जवाब देते हैं, 86 साल। नहीं लगता न, अगर ये पार्किंसंस (हाथों-पैरों के स्वत: हिलने की बीमारी) न परेशान करता तो शायद बिल्कुल भी न लगता। पुष्प मित्र भार्गव (पी.एम.भार्गव) देश के आला वैज्ञानिक, बायोलॉजिस्ट हैं। उन्हें इस बात की फिक्र है कि अगर देश में जीन संवद्धित (जीएम) फसलों को मंजूरी मिल गई तो इससे किस तरह न सिर्फ पर्यावरण, खेती को नुकसान होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों को नुकसान होगा।