देश-दुनिया को न्याय दिलाने वाले भारतीय न्यायाधीशों की कोई यूनियन नहीं होती। वे नारे नहीं लगा सकते। विरोध में प्रदर्शन नहीं कर सकते। स्वयं बनाई आचार संहिता के तहत अधिकांश न्यायाधीश भव्य पार्टियों से भी बचते रहते हैं। निजी समारोह में भी कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करते। विधि संस्थानों अथवा प्रतिष्ठित संस्थानों को छोड़कर सभाओं को संबोधित करने नहीं जाते। केवल सत्य निष्ठा और निष्पक्ष न्याय उनका मूल मंत्र और लक्ष्य होता है। कानूनी ग्रंथों के अलावा अदालत में प्रस्तुत प्रकरणों की मोटी फाइलें दिन-रात पढ़ते और फैसले लिखते हैं।
भारत ने धर्मशाला में एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के एक प्रमुख असंतुष्ट नेता को दिया गया वीजा संभवत: चीन की कड़ी आपत्ति की वजह से रद्द कर दिया है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर अब केंद्र राष्ट्रपति शासन लागू करने का अपना आदेश वापस लेता है तथा किसी और को सरकार बनाने की अनुमति देता है तो यह न्याय का उपहास होगा।
खुद को भारत का दोस्त बताने वाले अमेरिका ने साल 2005 में अफगानिस्तान के कंधार और जलालाबाद में भारतीय दूतावासों की संयुक्त निगरानी का प्रस्ताव पाकिस्तान के सामने रखा था।
बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा मंदिरों में प्रवेश को महिलाओं का मौलिक अधिकार बताए जाने के एक दिन बाद शनिवार को बड़ी संख्या में महिलाओं ने शनि शिंगणापुर मंदिर के भीतरी गर्भगृह में प्रवेश करने की कोशिश की लेकिन ग्रामीणों और पुलिस ने उन्हें रोक दिया। नाराज भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की नेता तृप्ति देसाई ने कहा कि अगर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ करने वाले न्यायालय के आदेश का सम्मान करने में विफल रहे तो वह उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराएंगी।
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) में सामाजिक न्याय संयुक्त कार्य समिति (जेएसी) के ताजा बहिष्कार के बीच आज से कक्षाएं शुरू हो गईं। जेएसी दलित शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्दे पर आंदोलन का नेतृत्व कर रही है।
न्यायपालिका पर आप या हम कोई प्रश्नचिह्न लगाएं, तो अवमानना कानून की लक्ष्मण रेखा सामने आ सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान राष्ट्रपति स्वयं न्याय की वर्तमान व्यवस्था एवं उसकी साख पर संकट की बात करें, तो निश्चित रूप से सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवाज उठनी चाहिये।
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थॉवरचंद गहलोत ने कहा है कि विशिष्ट पहचानपत्र (यूआईडी) लागू करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी गई है और इसे एक साल के भीतर पूरा करने के लिए सभी संभव कदम उठाए जा रहे हैं।