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उत्तराखंड चाहता है पर्यावरण संरक्षण से हुए नुकसान की भरपाई

उत्तराखंड चाहता है पर्यावरण संरक्षण से हुए नुकसान की भरपाई

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए उत्तराखंड ने अपने आर्थिक विकास से जो समझौता किया है उसकी अवश्य भरपाई की जानी चाहिए। गुरूवार को नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले कार्यक्रम नमामि गंगे में रावत ने कहा कि भागीरथी इको सेंसिटिव जोन की घोषणा ने लगभग दो मेगावाट से अधिक की क्षमता की परियोजनाओं को बाधित कर दिया।
सोशल मीड‌िया पर क्रिकेट प्रेमी

सोशल मीड‌िया पर क्रिकेट प्रेमी

ऑस्ट्रेलिया के हाथों बुरी तरह हार का मुंह देखने के बाद सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर विराट कोहली की दोस्त अनुष्का शर्मा को लेकर चुटकुलों की बाढ़ आ गई, वहीं भारतीय टीम से गुस्साए लोगों ने अलग-अलग तरह से अपना गुस्सा जाहिर किया-
पर्यावरण मंत्रालय में भी कॉरपोरेट जासूस

पर्यावरण मंत्रालय में भी कॉरपोरेट जासूस

दिल्ली पुलिस ने कॉरपोरेट जासूसी मामले में दो और लोगों को गिरफ्तार किया है। संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) रविंद्र यादव ने बताया, वन और पर्यावरण मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पीएस जितेंद्र नागपाल और यूपीएससी के एक सदस्य के पीए विपन कुमार को गिरफ्तार किया गया है।
महान कोल ब्लॉक का काम रुकेगा?

महान कोल ब्लॉक का काम रुकेगा?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय मध्यप्रदेश के महान कोल ब्लॉक को दूसरे चरण की मंजूरी देने के पक्ष में नहीं है। यह जानकारी इलाक़े में सक्रिय पर्यावरणवादी संगठन ग्रीनपीस इंडिया ने एक आरटीआइ के ज़रिये हासिल की है। इस ख़बर के मिलने के बाद संगठन की ऐक्टिविस्ट प्रिया पिल्लई ने इसे आंदोलन की जीत बताया है।
जापान से सीखे भारत

जापान से सीखे भारत

हिंदुस्तान और बाकी दुनिया के लिए यह खबर आंखें खोलने वाली है। हम अभी भी पेट्रोल, डीजल या गैस आधारित कारों के अंधाधुंध उत्पादन को ही विकास का पैमाना मान रहे हैँ जबकि भारत में इन कारों के सबसे बड़ी उत्पादक कंपनियां अपने देश में पर्यावरण अनुकूल कारों का उत्पादन लगातार बढ़ा रही हैं।
वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वन भूमि पर सामुदायिक अधिकारों के दावा फॉर्म अधिकतर जगहों पर न तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं न उनकी जानकारी दी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार पूरे राजस्थान में अब तक केवल 150 सामुदायिक दावे ही पेश हो पाए हैं। अधिकतर वन अधिकार समितियां निष्क्रिय होने के कारण भौतिक सत्यापन नहीं हो पा रहा है। जहां वे सक्रिय हैं वहां वन विभाग और पटवारी सहयोग नहीं कर रहे हैं। समितियों, यहां तक कि ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित दावों को भी नौकरशाही नहीं सत्यापित कर रही है। कुछ जगहों पर अनपढ़ लोगों को धोखे से कब्जा छोडऩे के दावे पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। कहीं-कहीं दावेदारों के मौके पर काबिज होने के बावजूद काबिज नहीं होना दिखाया जा रहा है। साक्ष्यों की सूची में दावेदारों को नियमत: तीन में दो साक्ष्य मांगे जा रहे हैं। इस मामले में वन विभाग ग्राम सभाओं को भी गुमराह कर रहा है। नियमत: हर स्तर पर सत्यापन तक लोगों को बेदखल नहीं किया जा सकता लेकिन कई जगह लोगों को बीच में ही लोगों को बेदखल किया जा रहा है। गैर आदिवासी जंगलवासियों के दावे सीधे नामंजूर किए जा रहे हैं जो नियम विरुद्ध है। अभी तक 1980 के पहले के दावों का ही सत्यापन किया जा रहा है जबकि कानून 2005 तक के कब्जे मान्य होने चाहिए।
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