राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के समाप्त होने से एक महिने पहले दो मामलों में दायर दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इन दो याचिकों के खारिज होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अब तक खारिज की गयी कुल दया याचिकाओं की संख्या 30 हो गयी है।
इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित एक किताब का विमोचन करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वर्गीय इंदिरा गांधी को भारत की सबसे स्वीकार्य प्रधानमंत्री बताया है। इस समय हार के दौर से गुजर रही कांग्रेस को इंदिरा गांधी का उदाहरण भी दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने से इनकार करते हुए ऐसे समाचार को मनोरंजक खबरें बताया। उन्होंने कहा कि उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए नहीं आएगा, यदि इसका प्रस्ताव रखा भी जाता है तो वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पत्रकारिता का देश के सामाजिक सुधार के साथ लोगों में जागरुकता लाने में अहम योगदान है। राष्ट्रपति ने कहा कि देश की आजादी से लेकर वर्तमान में पत्रकारिता ने कई आयामों की स्थापना की है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि विश्वविद्यालयों और अकादमिक संस्थानों को निर्बाध बौद्धिक बहस के लिए पूर्वाग्रह, हिंसा या किसी कट्टर सिद्धांत से अवश्य ही मुक्त होना होगा। नालंदा में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के विदाई सत्र में मुखर्जी ने कहा कि नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के प्राचीन शिक्षण केंद्रों ने छात्रों और शिक्षकों के रूप में दुनिया भर से मेधावी लोगों को आकर्षित किया।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को देश के विकास में महिलाओं के अमूल्य योगदान की सराहना की और लोगों से लैंगिक समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के लिए कहा।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि महिलाओं को उनकी आशा, आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पूरा सहयोग दिया जाना चाहिए। साथ ही, कहा कि महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान और पूरी समानता मिलनी चाहिए, जो उनका पवित्र अधिकार है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा है कि क्षेत्र में बदलती भू-राजनीतिक स्थिति के बीच भारत की प्रगति और सुरक्षा पर बुरा प्रभाव डालने का इरादा रखने वालों के खिलाफ कड़े प्रतिरोध की जरूरत है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वतंत्र भारत में पहली बार बजट सत्र को समय से पहले आहूत करने और उसके साथ ही रेल बजट को विलय करने का उल्लेख करते हुए आज कहा कि लोकतंत्र के इस उत्सव के मूल्य एवं संस्कृति देश के लंबे इतिहास के हर दौर में फलते-फूलते रहे हैं। उनके संबोधन की शुरुआत और समापन सबका साथ, सबका विकास उक्ति से हुई।