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बाबा पहन रहे राजनीतिक चोला

बाबा पहन रहे राजनीतिक चोला

चाहे वह 2014 के लोकसभा चुनावों में आर्ट ऑफ लिविंग से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाए रविशंकर के अनुयायियों का भाजपा से चुनाव लडऩा हो या फिर हरियाणा विधानसभा चुनावों में गुरमीत राम रहीम सिंह का खुलकर भाजपा के पक्ष में मतदान करने की अपील हो। योग गुरु रामदेव का पहले अन्ना आंदोलन और फिर भाजपा से रिश्ता जगजाहिर है। पिछले लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में उनकी राजनीतिक सक्रियता ने उनके लाखों अनुयाइयों को प्रभावित किया।
सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

क्या कारण है कि जिस आडवाणी ने पहली बार जनसंघ का अध्यक्ष बनने पर 1973 में एक झटके में बलराज मधोक जैसी मजबूत शख्सियत को पार्टी से जड़ से उखाड़ फेंका, 1974 में जयप्रकाश आंदोलन के उड़ते तीर को पार्टी के लिए पकड़ बाद की इमरजेंसी के प्लावन मं सांप्रदायिकता की अस्पृश्यता धोने में गजब की फुर्ती दिखाई, संघ परिवार के संगठनों द्वारा आजादी के वक्त से ईंट-बैठाकर सुलगाए जा रहे बाबरी-मस्जिद रामजन्म भूमि के मसले को गरमाने के अवसरवादी क्षण को 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के संकट में अचूक पहचाना, 1996 में भाजपा की सत्ता के लिए अन्य दलों के साथ जरूरी गठजोड़ बनाने के वास्ते खुद पीछे हटकर वाजपेयी को आगे करने की उस्तादी दिखाई, आज वही अपने नेतृत्व में न सहयोगी गठबंधन को उत्साहित कर पाए न अपनी पार्टी की दूसरी प्रांत के नेताओं को?
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