क्या हम हल्दीराम की भुजिया खाने से पहले यह छानबीन करेंगे कि उस कंपनी में हमारी जात-बिरादरी, धर्म के कितने लोग, किन-किन पदों पर हैं? क्या झंडुु बाम लगाने से पहले भी हम उसकी धर्म-जाति तय करते हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर रूह अफजा ने क्या बिगाड़ा है। इसकी मिठास में नफरत की चासनी क्यों मिलाई जा रही है?
वेश्या से आपत्तिजनक तुलना के बाद भाजपा पर बिफ़रीं बसपा सुप्रीमो अब एक एक क़दम फूँक फूँक कर रख रही हैं । दरअसल उनकी योजना बिखर रहे अपने दलित वोट बैंक को इस मुद्दे पर संगठित करने की थी मगर उनके ही सिपहसलार नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी और राम अचल राजभर जैसो ने उनका खेल बिगड़ दिया।