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नीतीश के महागठबंधन में दरार, एनसीपी नाराज

नीतीश के महागठबंधन में दरार, एनसीपी नाराज

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महागठबंधन में अपने लिए मात्र तीन विधानसभा सीटें छोड़े जाने को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने न केवल अपना अपमान माना है बल्कि आरोप लगाया है कि सीट बंटवारे में उसकी अनदेखी की गई है। राकांपा के इस रुख से महागठबंधन में दरार दिखाई पड़ने लगी है।
उर्दू में रची हनुमान चालीसा

उर्दू में रची हनुमान चालीसा

एक मुस्लिम युवक ने हनुमान चालीसा का उर्दू में भावानुवाद कर देश की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल सामने रखी है। जौनपुर के निवासी आबिद अल्वी ने भाषा (एजेंसी) से बातचीत में कहा मैंने उर्दू शायरी की मुसद्दस विधा में हनुमान चालीसा का भावानुवाद किया है।
प्लेटफार्म नंबर सात

प्लेटफार्म नंबर सात

यह मौसम पतंगबाजी का नहीं है और गिरानी में नाच नाम से दो कविता संग्रह। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।
यूपीएससी परीक्षा में लड़कियों ने मारी बाजी

यूपीएससी परीक्षा में लड़कियों ने मारी बाजी

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने सन 2014 सिविल सर्विसेज परीक्षा के परिणाम घोषित कर दिए है। इस बार प्रावीण्य सूची में शुरुआती पांच में से चार लड़कियां है। इन लड़कियों में – पहले स्थान पर ईरा सिंघल, दूसरे पर रेनु राज, तीसरे पर निधि गुप्ता और चौथे स्थान पर वंदना राव ने कब्जा जमाया है। ईरा और निधि गुप्ता दोनों दिल्ली से हैं और वे दोनों ही भारतीय राजस्व विभाग में कार्यरत हैं।
आईसीएचआर पैनलः रोमिला थापर, इरफान हबीब आदि गए, ‘चीन्हो तो जानें’ आए

आईसीएचआर पैनलः रोमिला थापर, इरफान हबीब आदि गए, ‘चीन्हो तो जानें’ आए

जैसे चीजें चल रही हैं, भारतीय अनुसंधान परिषद का नाम जल्द ही भारतीय इतिहास गोलमाल परिषद कर देना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सबसे पहले पहचान की एक गड़बड़ी को लें। भारत के गजट में अधिसूचित किया गया कि किन्हीं वी.वी हरिदास को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का नया सदस्य नियुक्त किया गया है जो ‘कालीकट में इतिहास के प्रोफेसर’ हैं। जब इन हरिदास महाशय ने हिचकते हुए आईसीएचआर फोन करके कहा कि वह इससे बहुत सम्मानित महसूस कर रहे हैं, तब पता चला कि यह वह हरिदास नहीं हैं जिनकी अनुशंसा मंत्रालय ने की थी। इतिहास में पीएचडी वी.वी हरिदास मंगलूर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। लेकिन यह तो कोई दूसरे पी.टी हरिदास थे जिन्हें परिषद के लिए मनोनीत किया गया था हालांकि वह पी.एच.डी नहीं थे।
समीक्षा - रंगीले की रंगीनियत

समीक्षा - रंगीले की रंगीनियत

ज्यादातर भारतीय फिल्म निर्देशक ‘पोस्ट इंटरवेल ब्लू’ यानी मध्यांतर के बाद फिल्म को झुला देने की आदत से पीड़ित रहते हैं। तो कुछ हद तक गुड्डू रंगीला के निर्देशक सुभाष कपूर भी इससे बच नहीं पाए हैं। लेकिन यदि खाप पंचायत के सामने लड़कियों की स्थिति पर एक शानदार तकरीर वाले दृश्य पर विचार किया जाए, आखिरी दृश्य में शोले स्टाइल की लड़ाई और इस तरह के दृश्यों को देखें तो लगता है कि भारतीय दर्शकों के लिए भी यह सब जरूरी है। आखिर बुरा आदमी लहूलुहान हो कर पिटे ही न, उससे परेशान दो लड़कियां हीरो स्टाइल में उसे गोली न मारे तो क्या मजा। आखिर यह मजा ही दर्शकों को सिनेमाघर में खींचता है।
पूर्व कांग्रेसी मंत्री ने कोयला घोटाले में मनमोहन को लपेटा

पूर्व कांग्रेसी मंत्री ने कोयला घोटाले में मनमोहन को लपेटा

पूर्व कोयला राज्य मंत्री दसारी नारायण राव ने मंगलवार को कहा कि कोयला ब्लाकों के आवंटन के बारे में सभी निर्णय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किए जो उस समय कोयला मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे।
बेटे को शहीद का दर्जा दिलाने की जंग

बेटे को शहीद का दर्जा दिलाने की जंग

एक बुजुर्ग पिता पिछले आठ महीनों से रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय के चक्कर काट रहा है। जिंदगी भर पूरे दमखम से सत्ता प्रतिष्ठानों से लड़ने-भिड़ने का रसूख रखने वाले सांवलराम यादव ने प्रण किया है कि वह युद्ध में हताहत हुए अपने बेटे को शहीद का दर्जा दिलवाए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। मामला सिर्फ एक जवान की मौत का नहीं है। इससे जुड़ा हुआ है, उन सैकड़ों जवानों की मौत का मसला जो सियाचिन से लेकर दुर्गम सीमा पर देश के लिए अत्यंत विषम परिस्थितियों में जान गंवा देते हैं। इन जवानों की मौत को आखिरकार शहीद का दर्जा क्यों नहीं मिलता?
तिग्मांशु से यारी हो गई अमित साध की

तिग्मांशु से यारी हो गई अमित साध की

फिल्मों में जमने के लिए क्या फार्मूला है। सही मायनों में कोई तयशुदा फार्मूला नहीं होता हां एक बात है जो आपके पक्ष में होनी चाहिए और वह है किसी बेहतरीन निर्देशक से अच्छी ट्यूनिंग। यह ट्यूनिंग न इतनी आसान होती है न आसानी से बनती है। लेकिन अमित साध इसमें सफल रहे हैं।
फिल्‍म समीक्षा: अधूरी नहीं, एक कहानी पूरी सी

फिल्‍म समीक्षा: अधूरी नहीं, एक कहानी पूरी सी

यह तो तय है कि फिल्मकार पुरानी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। 60-70 के दशक की ‘परंपराएं’ और ‘संस्कार’ उन्हें लुभा रहे हैं। हमारी अधूरी कहानी इस बात के प्रमाण देती है। एक प्रेम कहानी को फिल्माने के हजारों तरीके होते हैं। फिर भी यह तरीके तयशुदा ही है। दो नायक एक नायिका वाला यह त्रिकोण भी ऐसा ही है।
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