जानेमाने सितारवादक पंडित रवि शंकर के 96वें जन्मदिन पर उनके सम्मान में सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाया है। उनके सम्मान में बनाए गए इस डूडल के केंद्र में सितार है।
दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में आज एक पूर्व पुलिसकर्मी सहित हिजबुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादी मारे गए। यह पूर्व पुलिसकर्मी पीडीपी के एक मंत्री की सुरक्षा में तैनात रह चुका है और पिछले साल दो एके 47 राइफल लेकर फरार हो गया था। सेना इसे बड़ी कामयाबी बता रही है।
जम्मू-कश्मीर में भाजपा के सहयोग से सरकार गठन को लेकर पीडीपी के दावे के मद्देनजर शिवसेना ने आज यह सवाल उठाया कि क्या अब मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार महबूबा मुफ्ती आतंकी हमलों में अपनी जान गंवाने वाले कश्मीरी पंडितों के सम्मान में भारत माता की जय बोलेंगी?
दिल को छू लेने वाली कश्मीरियत की मिसाल कायम करते हुए दक्षिण कश्मीर में कुलगाम जिले के एक गांव के मुसलमानों ने एक कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया। यह कश्मीरी पंडित आतंकवादियों के खतरे के कारण घाटी छोड़ने की बजाए अपनी जड़ों से चिपका रहा। उसने घाटी छोड़ कहीं और बसने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था जबकि उसके सभी परिजन घाटी से पलायन कर गए।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो फाइल सार्वजनिक की है कांग्रेस ने उसकी जमकर आलोचना की है। मीडिया रिपोर्ट में इस बात का खुुलासा हुआ कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली को चिट्ठी लिखी थी जो कि जिसमें नेताजी को युद्घ अपराधी लिखा गया था। जिसका कांग्रेस ने विरोध किया।
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने 26 वर्ष पहले घर छोड़ने के लिए मजबूर कश्मीरी पंडितों के अपने घरों को वापस नहीं लौटने का दोष आज कश्मीरी पंडितों के सिर पर ही मढ़ दिया।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की थी। परंतु उसके लगभग दो सौ साल बाद कुमाऊं में अल्मोड़ा के पंडित देवीदत्त जोशी ने ब्रजभाषा में श्री रामलीला नाटक लिख कर एक अनूठा प्रयोग किया। पूरी तरह गेयशैली में लिखे गए इस नाटक में उन्होंने अनेक स्वरचित गीत डाले।
कभी संजीदगी, कभी खिलखिलाहट और कभी आंखों से बहते हुए आंसू। कलाकारों की बांसुरी और उनकी आवाज से अपने नगमों को सुनकर नामचीन गीतकार संतोष आनंद के चेहरे पर कई भाव आ और जा रहे थे। पूरी महफिल उन्हें खुश होते देखकर खुश होती थी और उन्हें गमगीन देखकर रो पडती, लेकिन सबको खुशी इस बात की थी कि ठीक एक साल पहले अपने बेटे और बहू की असामयिक मौत के गम को पीछे छोड़ते हुए वह अपनी जिंदगी में आगे की ओर बढ़े रहे हैं।
आतंकवादियों की धमकियों को नजरअंदाज करके अपनी जड़ों से जुड़े रहने की जिद ठाने 78 वर्षीय कश्मीरी पंडित राम जी कौल की मृत्यु पर उनके पड़ोसी मुसलमानों ने न केवल मातम मनाया बल्कि उनके अंतिम संस्कार में उनके बच्चों का हाथ बंटाकर गम साझा करने की कोशिश की।