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Search Result : "मृदुल शर्मा"

हिंसा का राजमार्ग

हिंसा का राजमार्ग

नई फिल्म एनएच 10 की हिंसा प्रतिरोध की नहीं प्रतिशोध की हिंसा है। निर्देशक नवदीप सिंह ने मूल कहानी को पृष्ठभूमि में रख कर उस कहानी के बहाने कई बातें साधने की कोशिश की है। यह प्रयोग नया तो नहीं है पर हाल के सिनेमा में सीधी-सीधी बातें कह देने से अलग जरूर है।
निर्भया फिल्म: सीनाजोरी पर उतारू वकील

निर्भया फिल्म: सीनाजोरी पर उतारू वकील

लेस्ली उडविन की फिल्म इंडियाज डॉटर में महिला विरोधी टिप्पणी करने वाला एक वकील सीना जोरी पर उतारू हो गया है। वकील का कहना है कि गलत वह नहीं बल्कि वे लोग हैं जिन्होंने फिल्म पर पाबंदी के बावजूद उसे देखा है। वकील को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) ने नोटिस भेज कर सफाई मांगी है। लेकिन वकील का कहना है कि उसे अभी कोई नोटिस नहीं मिला है।
मोदी का सूट खरीदने वालों के दामन दागदार

मोदी का सूट खरीदने वालों के दामन दागदार

भारी-भरकम कीमत चुकाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादित सूट खरीदने वाले रईसों के दामन दरअसल दागदार ही हैं। जिन लोगों ने मोदी के अन्य सूट खरीदे हैं उनके ठिकानों पर पहले आयकर विभाग और आयात शुल्क अधिकारियों के छापे पड़ चुके हैं।
रजत शर्मा की क़ामयाबी का राज़

रजत शर्मा की क़ामयाबी का राज़

मीडिया, राजनीति और व्यापारियों के बीच का रिश्ता समझना हो तो इंडिया टीवी के मालिक और मुख्य संपादक रजत शर्मा इसके जीता जागता नमूना हैं।
अब क्या होगा कांग्रेस का

अब क्या होगा कांग्रेस का

दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने से राज्य में कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट पैदा गया है। लोकसभा चुनाव के बाद लगातार कमजोर होती जा रही कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐसा हस्र होगा इस बात का अहसास कांग्रेस नेताओँ को भी नहीं था।
निर्माता बन गई अनुष्का शर्मा

निर्माता बन गई अनुष्का शर्मा

बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा अब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में हाथ आजमाते हुए चर्चा में आई हैं। उन्होंने फिल्म ‘एनएच10’ में पहली बार सह-निर्माता का दायित्व संभाला है।
वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वन भूमि पर सामुदायिक अधिकारों के दावा फॉर्म अधिकतर जगहों पर न तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं न उनकी जानकारी दी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार पूरे राजस्थान में अब तक केवल 150 सामुदायिक दावे ही पेश हो पाए हैं। अधिकतर वन अधिकार समितियां निष्क्रिय होने के कारण भौतिक सत्यापन नहीं हो पा रहा है। जहां वे सक्रिय हैं वहां वन विभाग और पटवारी सहयोग नहीं कर रहे हैं। समितियों, यहां तक कि ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित दावों को भी नौकरशाही नहीं सत्यापित कर रही है। कुछ जगहों पर अनपढ़ लोगों को धोखे से कब्जा छोडऩे के दावे पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। कहीं-कहीं दावेदारों के मौके पर काबिज होने के बावजूद काबिज नहीं होना दिखाया जा रहा है। साक्ष्यों की सूची में दावेदारों को नियमत: तीन में दो साक्ष्य मांगे जा रहे हैं। इस मामले में वन विभाग ग्राम सभाओं को भी गुमराह कर रहा है। नियमत: हर स्तर पर सत्यापन तक लोगों को बेदखल नहीं किया जा सकता लेकिन कई जगह लोगों को बीच में ही लोगों को बेदखल किया जा रहा है। गैर आदिवासी जंगलवासियों के दावे सीधे नामंजूर किए जा रहे हैं जो नियम विरुद्ध है। अभी तक 1980 के पहले के दावों का ही सत्यापन किया जा रहा है जबकि कानून 2005 तक के कब्जे मान्य होने चाहिए।
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